“नहीं देखने हैं”
“नहीं देखने हैं”
तुम बांध लो गाँठ
अब कतई नहीं देखने हैं
वो उजालों की सूरत
जिस पर उन्नाव
कठुवा और महोबा
सूरत और भोपाल जैसी
पुती हुई है घोर कालिखें।
“नहीं देखने हैं”
तुम बांध लो गाँठ
अब कतई नहीं देखने हैं
वो उजालों की सूरत
जिस पर उन्नाव
कठुवा और महोबा
सूरत और भोपाल जैसी
पुती हुई है घोर कालिखें।