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26 Jan 2018 · 1 min read

नसीहत कुछ भी नहीं

भले आदमी के मुहं पे थुक जाए,नसीहत कुछ भी नहीं।
नँगा ग़लीयों में नाचे कूदे,मग़र,फजीहत कुछ भी नहीं।।

अजीब चलन है जमाने का शर्म वाकी नहीं रह गयी
ग़रीब इंसान खूब खिदमत करे,शख्शियत कुछ भी नहीं।।

जो अपना ईमान बेचकर खा रहे हैं,जनाब उन्है देखिये
इंसानों में गिनती भी सही की है,बदनीयत कुछ भी नहीं है।।

यह कहाँ का उसूल है क़ि इंसान का मांस नोच खाओ
फेंक दो अधमरा करके उसके घर,वसीयत कुछ भी नहीं।।

इस्मत लुटती है भरे चौराहों पे सरेआम वो कौन अंधा है
जानकर भी कहता है यही ,हैवानियत कुछ भी नहीं।।

आँखें हों पास जिसके साहब कैसे कहें मजबूर है वो
दिखती नहीं हैं उसे दिशाएं की पहचानियत कुछ भी नहीं।।

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