नशा मुक्ति
नशा मुक्ति अभियान
लगाकर वृक्ष हरा भरा,जो जड़ जलाते हैं।
पता नहीं ऐसा मानव,इस धरती पर क्यों आते हैं।।
परवाह नहीं फल फुल का,तना भी रोती हैं।
सर पकड़ कर वह बेचारी,
नरक कुंड में सोती है।
जीने का जिसको चाह नहीं,
वो धरती पर क्यों आते हैं।
लगाकर वृक्ष हरा भरा, जड़ को क्यों जलाते हैं।।
लगाया वृक्ष हरा भरा, गृहस्थ बसाया है।
अपने ही हाथों, अपने ही,घर में आग लगाया है।।
कौन समझाए इस सज्जन को,
जो स्वयं खुजलाते है।।
मृतासन्न में उन्हें सुलाने, यमराज बुलाते हैं।।
चिंतन करों फल फुल पर ,तने भी तुम्हारा है।
दांव पर लगी इज्जत इनका,
क्या यहीं सज्जन को प्यारा है।।
आत्म चिंतन है महां औषधि,
विजय सोच बताता हूं।
सोमरस के प्रेमी को ,सत्य मार्ग दिखलाता हूं।।