नरक हो रहे शहर
चूहों की तरह इंसा वसे है, शहरों की हर गली-मोहल्ले में ।
नालों किनारे घर बने है, दुर्गन्ध और बीमारी के अहाते में।।
ट्रैफिक में घण्टों फसा इंसान यहां, धुआँ निगल रहा ।
ना चाहते हुए भी जिंदगी को, कैंसर में धकेल रहा।।
गाड़ियों का मजमा लगा है, घर और ऑफिसों के आस-पास ।
इंसानो को दुत्कारता, कुत्तो को गोदी में लिए चूम रहा इंसान ।।
समाज का हर रिस्ता-कानून, यहां पर तार तार है ।
चाहिए हर पल मजा, वस यही जीवन का सार है ।।
आसमां से देखो, धुंए की चिमनी बन गया शहर ।
कालिख उगलती गाड़ियाँ, ट्रैफिक में जकड़ रहा शहर ।।
जमीं का आकार है छोटा, मगर गगनचुम्बी इमारतें।
सूरज के लिए तरसती, इनमे मासूम जिंदगियां हज़ार ।।
कैद हो गया बचपन घरो में, बुजुर्गों का पार्क ही निवास ।
नशे में है यहाँ जवानी या फिर जवान का चेहरा उदास।।
कूड़े-कचड़े का ढेर है, हर जगह गन्दगी से बुरा हाल।
बदल रहे शहर, स्वर्ग सा नही नरक सा हो रहा विकास ।।
मुँह फाड़ती मंहगाई यहां, हर किसी का खस्ताहाल ।
चिल्ला रहे अखबार सब, शहरों का हो रहा उद्धार ।।
गाँव खाली हो रहे हैं, अच्छी जिंदगी जीने के वास्ते ।
जाति व्यवस्था तोड़ने, और रोजगार पाने के वास्ते ।।
नही कमती दो वक्त की रोटी, अब गाँव-किसान के खेत में ।
ना कोई सुविधा, गाँव के नाम पर फाइलों का बढ़ रहा हिसाब ।।
बढ़ रहा है रोजगार केवल, राजधानी और शहरों के आस-पास ।
मजबूर इंसा भाग रहा, छोड़ कर अपना गाँव और घर परिवार ।।