नम आँखे
**** आँखें नम क्यों है ****
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**** 222 222 22 ****
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जन जन की आँखें नम क्यों है,
मन मे गहराया गम क्यों है।
पग पग में काँटे ही काँटे,
मुरझाया सा आलम क्यों हैं।
मुख पर फैला कैसा साया,
दरवाजे पर मातम क्यों है।
कब होगा सूरज का आना,
दिन में भी आतप कम क्यों है।
ना खुल कर कर पाए बातें,
पल पल पर घुटता दम क्यों है।
मनसीरत दुख सुख का साथी,
फिर घबराता हमदम क्यों है।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेडी राओ वाली (कैथल)