नज़रों में तेरी झाँकूँ तो, नज़ारे बाहें फैला कर बुलाते हैं।
नज़रों में तेरी झाँकूँ तो, नज़ारे बाहें फैला कर बुलाते हैं,
तेरे दिल के शहर को, मेरे सपनों का नगर बनाते हैं।
आहटों को तेरी सुनूं तो, ये मेले तन्हाईओं में लगाते हैं,
मेरे ठहरे पतझड़ को, तेरे फूलों की खुशबू से महकाते हैं।
सवेरों में तेरे देखूं तो, तुझमें मेरा सूरज दिखाते हैं,
तेरी बातों के संगीत को, मेरी खामोशी का शब्दकोश बनाते हैं।
नाम को तेरी जो छू लूँ, तो पहचान मेरी मुझसे कराते हैं,
मेरे इस झूठे जग को, तेरे इरादे सच्चा कर दिखाते हैं।
राहों में तेरी चलूँ तो, पैरों को पंख लगा उड़ाते हैं,
तेरे घर की दहलीज को, मेरे लक़ीरों की मंजिल बनाते हैं।
हाथों को तेरी थामूं तो, दुआएँ दामन को सहलाते हैं,
मेरे कोरे क्षितिज को, तेरे इंद्रधनुषी रंग चमकाते हैं।
धड़कनों को तेरी सुनूं तो, ख्वाहिशें मेरी ये सुनाते हैं,
मेरे सारे जन्मों को, तेरे बंधन का संयोग लिखवाते हैं।