नए साल पर एक विरहणी की वेदना
नए साल पर एक विरहणी की वेदना
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नया साल है ,बुरा हाल है,
चारो तरफ फैला बबाल है।
मिलने का मन करता है तुमसे,
मेरा भी अब बुरा हाल है।।
बाहर मै निकल नही सकती,
तुमसे भी मैं मिल नही सकती।
कैसा ये करोना काल आया है,
अपनो से भी मैं मिल न सकती।।
चल रही है अब ठंडी ठंडी हवाएं
बैरन बन चुकी है मेरी ठंडी हवाएं।
कैसे रोकूं इनको मै अब तुम बिन,
ये दिन रात अब मुझको सताए।।
कैसे मनाऊं ये नया साल तुम बिन ?
गिन रही हूं एक एक दिन तुम बिन।
चारो तरफ प्यार पे कोहरा छाया है,
कैसे काटू में ये ठंडी राते तुम बिन।।
नाइट कर्फ्यू नगर में लगा हुआ है,
पुलिस का भी पहरा लगा हुआ है।
बंद पड़े है सभी रेस्टुरेंट व मॉल,
फिर भी कहते लोग ये नया साल है।।
चारो तरफ अब अंधेरा मचा है,
चुनाव रैलियों का शोर मचा है।
कोरोना काल लगा है प्रोटोकॉल,
फिर कैसे मनाऊं मै ये नया साल।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम