“धीरे-धीरे”
“धीरे-धीरे”
धीरे-धीरे
मरने लगता है इंसान जब-
पढ़ते नहीं कोई किताब,
करते नहीं किसी को याद।
सूख जाते आँखों के आँसू,
हो नहीं पाते अहसासू।
देखना छोड़ देते स्वप्न,
खत्म कर देते अपना जज़्ब।
“धीरे-धीरे”
धीरे-धीरे
मरने लगता है इंसान जब-
पढ़ते नहीं कोई किताब,
करते नहीं किसी को याद।
सूख जाते आँखों के आँसू,
हो नहीं पाते अहसासू।
देखना छोड़ देते स्वप्न,
खत्म कर देते अपना जज़्ब।