धर्म की खूंटी
धर्म की खूंटी पकड़ लो,
अधर्म पास नहीं आयेगा।
सोच ले तू नेक बंदे,
क्या साथ तेरे जायेगा।
पंचेन्द्रियों के जाल में फंसकर,
दर-दर भटकता तेरा अस्तित्व है।
छोड़ दे नजरों की बातें,
मन के करीब तू आयेगा…
धर्म की खूंटी पकड़ लो….
स्वाद लिप्सा में जो पड़कर,
लपलपाता तेरा जीभ है।
भक्ष्य और अभक्ष्य में फिर वो ,
फर्क क्या कर पायेगा।
कान को लगता है प्यारा,
अब झूठ के ही बोल क्यूँ।
सत्य से नाता बना लो,
जो साथ तेरे जायेगा…
धर्म की खूंटी पकड़ लो…
बोल मीठे बोल मुख से,
बड़े बुजुर्गों से ही सदा।
जख्म दे जो अपनेपन को,
वो शब्द तुझे ही सताएगा।
काम है सृष्टि बीज मंत्र ,
जो चेतना शिव तत्व है।
वासना में जड़त्व बसता,
जो नर्क में तुझे ले जायेगा…
धर्म की खूंटी पकड़ लो….
क्या भला है क्या बुरा है,
सोचता है मन सदा।
कृत्य तेरे व्यक्तित्व का ही,
साथ तेरे जायेगा ।
उलझी हुई पहेलियों में,
खुशनुमा हर ख्वाब है।
पल भर का सुकून है बस,
ग़म साथ तेरे जायेगा…
धर्म की खूंटी पकड़ लो….
मौलिक और स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® मनोज कुमार कर्ण
कटिहार ( बिहार )