धर्मांध
धर्मांध –
धर्म आत्मा आभूषण धारण करना शाश्वत है सत्य धर्म मर्म मर्यादा ।।
धर्म में अंधा क्रूर कुटिल आक्रांता मानवता राष्ट्र समाज द्रोही अहंकार ।।
धर्मान्ध कि मर जाती आत्मा कांप उठता मानवता समाज धर्म प्रेम करुणा क्षमा का गागर सागर धर्मांधता मानवता कि हत्या कि तीर तलवार ।।
धर्मान्ध की परिभाषा विशुद्ध सात्विक धर्मांध विकृत लेकिन किंतु परंतु का अवसर अभिशाप।।
छल छद्म धर्म का बन जाता जब
मर्म राष्ट्र समाज कुटिल क्रूरता से
रक्त रंजित समय काल पुकार।।
धर्म जीवन आचरण अनुशासन जीवन कि लौकिकता भौतिकता
सत्यार्थ धर्म कि दो आंखे मानवता
सेवा सार।।
छुद्र स्वार्थ में मानव अंधा हो जाता धर्म नाम पर निहित स्वार्थ को पुरित करता धर्मांध व्यवहार।।