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4 Feb 2024 · 1 min read

बासठ वर्ष जी चुका

बासठ वर्ष जी चुका, जाने
कितने वर्ष और है जीना
जाने कितने विष के प्याले
मुझको अभी और है पीना

जन्मा जाने कहां, किस तरह
शैशव बचपन गया बिताया
कहां-कहां किन-किन गुरुओं से
पढ़कर अपना ज्ञान बढ़ाया

कितनों ने हड़पा मेरा हक
मैंने कब किसका हक छीना
जाने कितने विष के प्याले
मुझको अभी और है पीना

बिना लगे ही हर्र फिटकरी
जाने कहां नौकरी पायी
चार दशक सकुशल बीते पर
सकुशल मुझे न मिली विदाई

लांछन गये लगाये मुझ पर
सहता रहा वज्रवत सीना
जाने कितने विष के प्याले
मुझको अभी और है पीना

मजबूरी में न्यायालय के
चक्कर मुझको पड़े लगाने
पर मन में विश्वास सुदृढ़ है
विजय सत्य की सोलह आने

बजती आयी, सदा बजेगी
निर्मल मानस में ही वीणा
जाने कितने विष के प्याले
मुझको अभी और है पीना

चोर उचक्कों की चांदी तो
बस थोड़े दिन ही रहती है
‘उघरे अन्त न होय निबाहू’
रामचरितमानस कहती है

नाभिकुण्ड जिनके पियूष वे
साबित होते हैं मतिहीना
जाने कितने विष के प्याले
मुझको अभी और है पीना

महेश चन्द्र त्रिपाठी

Language: Hindi
Tag: गीत
52 Views
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