*धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक श्री अख्तर अली खाँ और श्री शन्नू खाँ*
धर्मनिरपेक्षता के प्रतीक श्री अख्तर अली खाँ और श्री शन्नू खाँ
– —————————————————
ईद के अवसर पर रामपुर में दो व्यक्तियों के निवास पर जाकर उनसे गले मिलने का नियम मेरा तब तक रहा ,जब तक वह दोनों महानुभाव जीवित रहे । एक भूतपूर्व मंत्री श्री अख्तर अली खाँ थे और दूसरे भूतपूर्व विधायक तथा भूतपूर्व नगरपालिका अध्यक्ष श्री मंजूर अली खाँ उर्फ शन्नू खाँ थे ।
प्रारंभ में कुछ वर्ष इन दोनों महानुभावों के निवास पर पिताजी के साथ जाना शुरू हुआ था । फिर उसके बाद कई साल तक पिताजी तो नहीं गए लेकिन मुझे इन दोनों स्थानों पर जरूर भेज दिया करते थे । अख्तर साहब कुछ वैचारिक चर्चाएँ बैठकर कर लिया करते थे । एक – दो बार घर की दहलीज पर ही उनसे नमस्ते करके पिताजी और मैं लौट आया करते थे । वह बैठने का आग्रह करते थे लेकिन फिर भी पिताजी अपनी मधुर मुस्कान के साथ उन्हें मना लेते थे । मैंने भी जब बाद में वही क्रम अपनाया तो अख्तर साहब ने अधिकार पूर्वक मना कर दिया। बोले “यह नहीं चलेगा । ” फिर वह अपने घर के ड्राइंग रूम में जो यद्यपि पुराने स्टाइल का बना हुआ था ,लेकिन बहुत आकर्षक था ,उसमें ले जाकर अवश्य बिठाते थे । कई बार कुछ और लोग भी बैठे होते थे । कई बार केवल मैं और अख्तर साहब ही होते थे। वह विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखते थे , मेरे विचार जानने की कोशिश करते थे और थोड़ी – बहुत चर्चा होकर मैं घर वापस आ जाता था ।
आखिरी बार जब मैं ईद पर उनसे मिलने गया ,तब उन्होंने मुझसे कहा कि आओ ! तुम्हें अपने घर का बगीचा दिखाते हैं। उनके घर का बगीचा घर के थोड़ा अंदर जाकर था। उसमें कई प्रकार के पौधे तथा शायद कुछ घास भी थी । वहाँ दो – चार मिनट बीते । फिर उसके बाद अख्तर साहब मुझे एक दूसरे कमरे में ले गए ,जहाँ घर की स्त्रियाँ बैठी हुई थीं। अख्तर साहब ने मेरा परिचय उनको कराया । फिर उसके बाद हम दोनों कमरे से बाहर आए और मैं उनकी आत्मीयता के प्रति नतमस्तक होता हुआ अपने घर लौट आया । वह अख्तर साहब से मेरी आखरी मुलाकात थी ।
श्री शन्नू खाँ जब मैं अकेले जाता था ,तो थोड़ी बहुत बातें करते थे ।लेकिन वह वैचारिक परिचर्चा उस कोटि की नहीं होती थी ,जैसी अख्तर साहब के साथ हुआ करती थी । दूसरा फर्क यह था कि अख्तर साहब के यहाँ उपस्थित व्यक्तियों की संख्या नाम- मात्र की होती थी ,जबकि शन्नू खाँ साहब के निवास पर वह कभी भी अकेले नहीं मिले। दस-पाँच अवश्य होते थे । अख्तर साहब के स्वास्थ्य में आखिर तक कोई कमी नहीं थी, जबकि शन्नू खाँ साहब आखिर के एक-दो वर्षों में कुछ-कुछ थके से महसूस होने लगे थे ।
रामपुर के सार्वजनिक जीवन में जिन लोगों ने अपने धर्मनिरपेक्ष विचारों के द्वारा समाज में भाईचारा और सद्भावना की स्थापना के लिए कार्य किया , उनमें श्री अख्तर साहब और श्री शन्नू खाँ का नाम बहुत आदर के साथ लिया जाता रहेगा। आप दोनों ही व्यक्ति छोटी और हल्की बातों को नापसंद करने वालों में से थे । आपका जीवन और चरित्र उच्च कोटि का था ।आपके विचारों से सद्भावना और प्रेम की महक फैलती थी । आज ईद के दिन आप दोनों का स्मरण विशेष रुप से हो रहा है।
———————————————–
रवि प्रकाश ,बाजार सर्राफा ,रामपुर (उत्तर प्रदेश )
मोबाइल 99 97 61 545 1