धरती मां की कोख
पृध्वी दिवस पर
———————
खनिज लवण जल दे रहा, मानव को वरदान !
पृथ्वी पिंड विशाल यह ,.. लगता मातु समान !!
लगी केंद्र में आग है , ..फिरभी बाँटे नीर !
पृथ्वी इस ब्रम्हांड का, है ग्रह एक अमीर !!
कहीं प्रदूषण वायु का, कहीं रसायन खाद !
सारे मिलकर कर रहे , …पृथ्वी तल बर्बाद !!
जिसको भी मौका मिला,दिया उसी ने खोद!
सबको रखे सम्हालकर, पर धरती की गोद!!
फितरत यही जमीन की, लेती सब कुछ सोख!
धर्म निभाती नारि का,…. धरती माँ की कोख !!
रमेश शर्मा.