दौड़
“पैर” मेरा कह रहा मैं थक गया हूं।
नहीं चलता लो, अब रुक गया हूं।।
मस्त मन फिर फेंकता है स्वप्न डोरे।
तन बदन में मारने लगती हिलोरे।।
दौड़ पड़ता हूं पुनः मैं चाह की उस रह पर।
जो भुलाया रिश्ते नाते और सब परिवार घर ।।
दौड़ की इस दौड़ में कोई जीतेगा जरूर।
मैं ही जीतूंगा, यह कौन बतलाए हुजूर।।
जीतना और हारना, क्या खेल है यह जिंदगी।
अब मैं समझा, जिंदगी का मेल है ये जिंदगी।