दो आखिरी बचे हुए सितारे
जिसे जितना अपना
समझा
वह उतना ही पराया
निकला
हर किसी ने
आखिरकार छोड़ ही दिया मुझे
जिंदगी के किसी न किसी मोड़ पर
तन्हा
यादों का काफिला भी
अब तो
धुंधला सा पड़ने लगा है
चमकते हुए आसमान में
बस दो आखिरी बचे हुए सितारे
अंत में दिखते हैं
एक मेरे पिता सूरज से
दूसरी मेरी मां एक चांद सी।
मीनल
सुपुत्री श्री प्रमोद कुमार
इंडियन डाईकास्टिंग इंडस्ट्रीज
सासनी गेट, आगरा रोड
अलीगढ़ (उ.प्र.) – 202001