#ग़ज़ल-24
वज़्न-212-221-212-222
दोहरे किरदार को निभाते हो तुम
और हमको आइना दिखाते हो तुम/1
झूठ में जीवन बिता रहे हो अपना
और सच के मायने सिखाते हो तुम/2
राज को इक राज ही रखो संभाले
भूलकर क्यों हमें सब सुनाते हो तुम/3
देखिए उस चाँद को खिला वो अंबर
इस ज़मीं पर किसलिए बताते हो तुम/4
आपका हर काम बीच में रह जाता
बेरुख़ी का मोल जब चुकाते हो तुम/5
आपने ये साज़िशें कहाँ से सीखी
प्यार करते हो मगर छिपाते हो तुम/6
आपको बेचैनियाँ रुलाती हैं गर
हल निकालो दर्द क्यों बढाते हो तुम/7
शोख़ियाँ नादानियाँ भुला भी दो सब
अब जवानी के लम्हें बिताते हो तुम/8
आ गए हो होश में चलो घर अपने
रात ग़ैरों के यहाँ अरे गँवाते हो तुम/9
आपकी हर बात ही लुभाती हमको
हाथ “प्रीतम हम हृदय मिलाते हो तुम/10
आर.एस. “प्रीतम”
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