” दोस्त मिलते गए कारवां बनता गया “
डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
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कुछ दोस्त मिलते गए
कारवां बनता गया !
हम साथ यूँ चलते रहे
रास्ता बनता गया !!
बिछुड़े हुए साथी भी
हमारे साथ हो लिए !
पुरानी यादों को हम
नए ताजे कर लिए !!
उनके एहसासों और
प्यार को जानते थे !
कभी यूँ रूठ जाना
मनना हम जानते थे !!
हमारी शक्लें यूँ तो
वर्षों से बदल चुकी थीं !
पर हमारी सोच अबतक
ना डोल चुकी थीं !!
नए दोस्तों का काफिला
आके मिल गया !
प्रेम से सारे मिल गए
जश्न फिर होने लगा !!
अनजान कुछ क्षण रहे
बंधनों से जुड़ गए !
दुःख के क्षण में शब्दों
के मरहम कर गए !!
मित्रता . मित्रता है
क्या .पुरानी नयी बात है !
सामने से मिल सके ना
फेसबुक में साथ हैं !!
हमारी बातें हमारी सोच
हमें करीब लाती हैं !
कोई विभेद की बातें
हमें परेशां कर जाती है !!
स्नेह के पतवारों से
मित्रता की नाव चलती है !
मृदुलता प्यार के बल से
मित्रता चमकती है !!
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डॉ लक्ष्मण झा ” परिमल ”
नाग पथ
शिव पहाड़
दुमका