देख रहा था पीछे मुड़कर
देख रहा था पीछे मुड़कर, 60 बरस कब बीत गए
बचपन यौवन और जवानी, सब के सब ही रीत गए
पीछे यादों का मेला है, जिसमें हंस अकेला है
छूट गए सब संगी साथी, अब चला चली की बेला है
बचपन की वह प्यारी यादें, आज जहन में ताजी हैं
मात-पिता दादा दादी, नाना मामा की यादें हैं
याद हैं सारे मित्र पुराने, छुपा छुपैया गिल्ली डंडा
गांव का वह चित्र पुराना, मास्टर जी का जोर का डंडा
खेत खलियान पगडंडियां, आज भी बहुत लुभाती हैं
शरारतें मित्र मंडली की, याद आज भी आती हैं
याद है मामा का गांव, स्कूल की छुट्टी कटती थी
ठंड दुपहरी बरसात नहीं, केवल और केवल मस्ती थी
बाग बगीचे बड़े मनोहर, एक नदिया सुंदर वहती थी
खाना-पीना और खेलना, बेफिक्र जिंदगी रहती थी
बढ़ा हुआ आगे पढ़ने को, मुझको शहर पठाया
जाने का उत्साह बहुत था, पर वह रास ना आया
पुराने संगी साथी घर गांव, याद बहुत ही आया
नया-नया स्कूल, सब नए-नए सहपाठी
कुछ ही दिनों में घुला मिला, फिर नई दोस्ती गांठी
स्कूल से जब कालेज गए, सब बदल गई परिपाटी
फैशन फिल्में नई अदाएं, उस दौर में हमने बांटी
कैसे भूल सकते हैं यारों, कालेज टाइम की यारी
कब पढ़ाई पूरी कर, नौकरी में कब आए
कब परिणय में बंधे, वे पल भूले नहीं भुलाए
घर गृहस्थी के चक्कर में, कब केश श्वेत हो आए
नौन तेल और लकड़ी में,बरसों बरस लगाए
कब बच्चे हो गए, कब कॉलेज पढ़ आए
उनकी भी शादी कर दी, अब नाती पोते आए
चौथे पन में याद पुरानी, मन को खुशियां देती है
पीछे मुड़कर देखा तो, नई पीढ़ी साफ झलकती है
यही है जीवन चक्र, यही है रीत पुरानी
खट्टी मीठी यादों की, यह है तस्वीर सुहानी
सुरेश कुमार चतुर्वेदी