दिल की बात
कुछ कहीं या ना कहीं,
इस सोच में थी डूबी फिर,
सोचा क्यों ना कहे,
यह पल भी तो किसी उत्सव से काम तो नहीं,
शब्दकोश में शब्द कुछ कम थे,
अलंकारों का ज्ञान भी कुछ काम जान पड़ता था,
फिर सोचा रंगों का सहारा लूं,
सुंदर चित्र के माध्यम से दिल की बात सुना दो,
जुलाहे की तरह लगी रही उधेड़बुन में,
क्या यह मैं ही थी,
क्या अभी भी समझना कुछ बाकी था,
फिर सोचा सुरो को छेड़ लेना,
दिल की बात सुना देना,
नया गीत कोई रचा देना,
ऐसा सोच मंद मंद मुस्कुरा,
फिर तो जानू सच सोचा,दिल की बात भी कभी जुबां पर आई न सुनी ना सुनाई,
दिल की बात तो दिल में ही समाई।