दिल की पुकार
मिलने को तरस रहा है भंवरा
और वो समझता ही नहीं
जब भी गुजरता है बगिया से
वो फूल उसे मिलता ही नहीं।।
कहां छुपा है परदे में न जाने
दीदार को तरस रहे है दीवाने
कौन अपना है यहां कौन नहीं
तू इतना भी क्यों न पहचाने।।
तुझे छूना चाहती है वो आज भी
हवा को भी तेरी ताज़गी चाहिए
खिल रहे है नए फूल बगिया में
उनको भी तेरी बानगी चाहिए।।
कब तलक तड़पाएगा यूं ही
अपना चेहरा छुपाएगा यूं ही
है गुज़ारिश छोड़ो अब पर्दा
कहीं बसंत बीत न जाए यूं ही।।
आवाज़ दे रही ये कायनात तुम्हें
सुनाई देगी कब ये पुकार तुम्हें
सुन लो फरियाद इसकी अब तो
दे रहा है दिल मेरा जो आवाज़ तुम्हें।।
कोई तो खड़ा है इन्तज़ार में तेरे
बरसों बीत गए है इन्तज़ार में तेरे
जो अब न आया हो जायेगी देर बहुत
क्या रोने ही आएगा जनाजे में मेरे।।