*दिल्ली*
दिल्ली की रफ़्तार देख लो –
इसकी सर्पिल सड़कों पर
दौड़ती-फिरती
मेट्रो, बाइक, कार देख लो –
सबके सब यहाँ जल्दी में हैं,
न जाने कहाँ है मंज़िल सबकी? –
भाग-दौड़ और आपाधापी
का सिलसिला
थमने का नामोनिशां नहीं
जाने क्या है मर्ज़ी रब की? –
भीड़ है इंसानों की
मगर इंसानियत गुम है,
पड़ोसी पड़ोसी को पहचानता नहीं-
दुःख-दर्द बाँटना तो दूर,
इक दूसरे का नाम तक कोई जानता नहीं-
दोस्त कहने को तो हैं बहुत
मगर अपने अपने
स्वार्थ के वशीभूत हैं;
दोस्ती का मक़सद भी
कहीं न कहीं महज़ स्वार्थों की सिद्धि है –
आज ‘विचारों की समानता’
मित्रता का मूलमंत्र नहीं
बल्कि इसकी बुनियाद
संपत्ति और समृद्धि है –
यहाँ हवा के कण-कण में
इक बेताबी और बेचैनी है –
दिल से दिल के तारों पर
धूल-मिट्टी और जंग चढ़ी है
पर नफ़रत की तलवार यहाँ
धारदार और पैनी है –
आजू-बाजू को रौंद सभी में
आगे बढ़ने की होड़ है –
इंसानों के बीच न जाने
ये कैसी चूहा-दौड़ है? –
लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती की
पूजा जिसकी विरासत थी
यह उसी देश की राजधानी है –
पर आज यहाँ नारी की अस्मिता
शर्म से पानी पानी है –
भव्य इमारतों की यह नगरी
है इतिहास की एक धरोहर –
क़ुतुब, लालकिला, जंतर-मंतर –
बाग बगीचे एक से बढ़कर एक मनोहर –
बाजार/मॉल अफ़रात यहाँ –
इंडिया गेट पर शाम ख़ुशनुमा
है डिस्को वाली रात यहाँ –
उच्च शिक्षा का विद्या-मंदिर,
यह राजनीति का अखाड़ा है –
बेहिसाब गर्मी है यहाँ
और हाड़ कंपाता जाड़ा है –
देश के कोने-कोने से आकर
बस गए हैं लोग –
हर राज्य की संस्कृति
यहाँ पल रही,
है कितना अद्भुत संयोग –
हम सब दिल्ली वासी मिलकर
अगर दूर कर सकें
इसकी बुराइयाँ –
और अपने सद्प्रयासों से
बढ़ा सकें इसकी अच्छाइयाँ –
तो यह तय है
कि इसका नाम
विश्वपटल पर
शीर्ष में लिखा जाएगा –
आनेवाली सदियों तक
यह अपनी अमिट छाप
जन-जन के ह्रदय पर
छोड़ जाएगा।