दहेज उत्पीड़न
दहेजप्रथा
मेरी बहन,
न जाने ये तुम्हारी कैसी कहानी है,
आँचल में धूप और आँखों में पानी है।
जो जग ने की,
तुम्हारे साथ मनमानी है,
वही आज मुझे सुनानी है।
शादी – विवाह दो आत्माओं का मेल नहीं,
गुड्डे – गुड़ियों का खेल है।
रूप और गुण का मेल नहीं,
ये सब दहेज का झमेल है।
ये सब रीति – रिवाजों और खुशियों का सुरूर नहीं,
कुछ लोगों को केवल पैसों का गुरुर है।
शादी में लोग खाते वक़्त शर्माते नहीं,
केवल अपना – पन जताते हैं।
जब मदद माँगों,तो पीछे हट जाते हैं।
जी भर के खाते,
मुफ्त में दोस्तों को भी खिलाते हैं।
कम पड़े तो घर भी ले जाते हैं,
फिर भी लड़की वाले इन्हें खुश न कर पाते हैं।
बाप और भाई शादी में
वर्षों की कमाई एक दिन में लुटाते हैं
बस बेटी खुश रहे,
इससे ज्यादा वो कुछ नहीं चाहते हैं।
पढे – लिखे लोग कहते कि
मुझे इससे परहेज है,
न जाने फिर क्यों लेते और देते दहेज हैं।
किसने और कब ये बेतुके रस्म बनाएं हैं,
दहेज के चक्कर में जाने कितनी लड़कियों ने अपने प्राण गवाएं हैं।
पण्डित से कितने तंत्र-मंत्र शादी में पढ़े जाते हैं,
फिर भी बहन शादी के बाद खुश क्यों न रह पाती है।
दहेज के चक्कर में बाप तो छोड़ो,
साहब भी बैठे बिक जाते हैं।
कारण दहेज के वो ठीक से खा भी न पाते हैं।
दहेज प्रथा अनपढ़ लोग नहीं,
पढे – लिखे लोग ही बढ़ाते हैं।
इंजीनियर हो तो 5,डॉक्टर हो तो 10 लाख ले जाते हैं
कहते हैं कि पढे – लिखे लोग इस प्रथा को खत्म कर जाएँगे,
लेकिन उनकी बारी आए तो
माँ-बाप भिखारी की तरह हाथ फैलाएंगे।
दहेज की बात न पूछो,
लेने वाले क्या-क्या बात बनाते हैं
चक्कर में इसके जमीन,खेत,तो छोड़ो
घर भी बिकवाते हैं।
आधा हो जाता घर का राशन,
बिन दवा जान भी निकल जाती है।
लेने वाले दहेज हर तिकड़म अपनाएंगे,
बिन दहेज किसी भी हाल में बेटी ना ले जाएँगे।
गर लेन – देन में छूट गया कुछ,
सास, सांसों पर भारी हो जाएगी।
सोते-जागते,उठते-बैठते हर वक़्त,
ताना और खरी-खोटी सुनाएगी।
जो माँ – बाप समय पर दहेज नहीं दे पाते
उनकी बेटियों को ये लालची ससुराल वाले जिंदा जला देते।
मेरी बहन,
न जाने ये तुम्हारी कैसी कहानी है,
आँचल में धूप और आँखों में पानी है।
जो जग ने की,
तुम्हारे साथ मनमानी है,
वही आज मुझे सुनानी है।
राज वीर शर्मा
संस्थापक सह अध्यक्ष-हिंदी विकास मंच