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9 Jun 2024 · 1 min read

दहकता सूरज

दहकता सूरज
तपता रेगिस्तान…
जमीं की कोख़ से
फूटे तो कोई आबशार…
कि हर तरफ है वादियों में घुटन
कि जल रहा है ये मुरझाया बदन
कड़कती धूप में मजबूर कोई
कमाई का निभा रहा है चलन
इसी अज़ाब में मरने को है
मजबूर एक गरीब कोई
खुदा की कुफ़्र का फर्क नहीं पड़ता उसको
कि जिसके पास है दौलत का जमीर
है दुनिया में वही खुशबास जिसे
ये दुनिया वाले कहते हैं अमीर…

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