दरख़्त
कभी हुआ करता था
यहाँ पर एक दरख़्त
तब आबाद थी सरजमीं
चिड़ियों के घोंसले
पक्षियों का कलरव
बच्चों के झूले,
कि देखने वाले का मन छू ले।
वक्त ने करवट बदला
फिर एक दिन
आंधियों के भयंकर थपेड़ों ने
ले ली उसकी जान,
मगर स्मृति के आँगन में
जिन्दा है अब भी
कि लोग कर लेते हैं अक्सर
उसकी महिमा के बखान।
उसी से जाना था हमने
स्थिरता में भी
गतिशीलता का अस्य,
एकाकी होकर भी
आबाद रहने का रहस्य।
डॉ. किशन टण्डन क्रान्ति
साहित्य वाचस्पति