Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
11 Feb 2024 · 1 min read

दगा बाज़ आसूं

आंसू भी कैसे होते है ना
जब आना होता है इन्हे
तब आते नही
और जब हम ज़रा सा भी मुस्कुराते है

तब बिन बुलाए आ जाते है
और जब हम इन्हें छुपाना चाहते है दुनिया से
तब ये भरी भीड़ में भी चले आते है
और जब हम चाहते है कोई इनकी आहट सुने

तब ये चुप चाप तकिए में समा जाते हैं
होती है कोई खुशी तब भी चले आते है
और गम में अकेले में ही बाहर आते है
कभी बात बार पर आंखों में आ जाते है

और कभी कभी तो दिल पर लगी बात पर भी नही आते
कभी कभी खुली आंख से बाहर आते हैं
तो कभी बंद आंखों से बह निकलते है
कभी बूंद बूंद करके बाहर आते है

तो कभी धार बनकर बाहर आते है
ये मेरे आंसू सच बड़े दगा बाज़ होते है ये आंसू
जब चाहो तब नही आते आंसू
और कभी बिन बुलाए चले आते हैं आंसू ।।

183 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.

You may also like these posts

ख़यालों को गर अपने तुम जीत लोगे
ख़यालों को गर अपने तुम जीत लोगे
Dr fauzia Naseem shad
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
निगाहें प्यार की ऊंची हैं सब दुवाओं से,
TAMANNA BILASPURI
अमृत नागर
अमृत नागर
Rambali Mishra
जिंदगी है बहुत अनमोल
जिंदगी है बहुत अनमोल
gurudeenverma198
आया जाड़ा (बाल कविता)
आया जाड़ा (बाल कविता)
Ravi Prakash
मैं उड़ना चाहती हूं
मैं उड़ना चाहती हूं
Shekhar Chandra Mitra
दुनिया को अपना समझना ही भूल है,
दुनिया को अपना समझना ही भूल है,
श्याम सांवरा
एलुमिनाई मीट पर दोहे
एलुमिनाई मीट पर दोहे
Dr Archana Gupta
विश्वास कर ले
विश्वास कर ले
संतोष बरमैया जय
संस्कारों की रिक्तता
संस्कारों की रिक्तता
पूर्वार्थ
हिंदी हमारी शान है
हिंदी हमारी शान है
punam lata
"सावन की घटा"
Shashi kala vyas
ज़ख्म फूलों से खा के बैठे हैं..!
ज़ख्म फूलों से खा के बैठे हैं..!
पंकज परिंदा
पिता जी
पिता जी
डॉ राजेंद्र सिंह स्वच्छंद
आप चाहे हज़ार लाख प्रयत्न कर लें...
आप चाहे हज़ार लाख प्रयत्न कर लें...
Ajit Kumar "Karn"
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
विश्व की पांचवीं बडी अर्थव्यवस्था
Mahender Singh
रोला छंद
रोला छंद
sushil sarna
!! परदे हया के !!
!! परदे हया के !!
Chunnu Lal Gupta
बिन गरजे बरसे देखो ...
बिन गरजे बरसे देखो ...
sushil yadav
दोहे
दोहे
seema sharma
संसार का स्वरूप(3)
संसार का स्वरूप(3)
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
प्रेम
प्रेम
Karuna Bhalla
आधारभूत निसर्ग
आधारभूत निसर्ग
Shyam Sundar Subramanian
कल की चिंता में हम अपना वर्तमान नष्ट नही करते।
कल की चिंता में हम अपना वर्तमान नष्ट नही करते।
Rj Anand Prajapati
ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
ग़म से बहल रहे हैं आप आप बहुत अजीब हैं
पूर्वार्थ देव
" भाव "
Dr. Kishan tandon kranti
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
अगर आपके पास निकृष्ट को अच्छा करने कि सामर्थ्य-सोच नही है,
manjula chauhan
🙅सावधान🙅
🙅सावधान🙅
*प्रणय प्रभात*
प्रेम
प्रेम
हिमांशु Kulshrestha
42 °C
42 °C
शेखर सिंह
Loading...