*थियोसॉफिकल सोसायटी : एक परिचय*
थियोसॉफिकल सोसायटी : एक परिचय
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वैसे तो धार्मिक आधार पर बहुत सी संस्थाएँ अस्तित्व में हैं , लेकिन थियोसॉफिकल सोसायटी उनमें सबसे अलग और अपनी विशिष्ट छटा बिखेरने वाली एकमात्र संस्था है । कारण यह है कि थियोसॉफिकल सोसायटी उदार और मनुष्यतावादी समाज के निर्माण की आकांक्षी है । किसी भी प्रकार की जड़ता अथवा विचारों की कट्टरता इसे अस्वीकार है। थियोस्फी एक ऐसे मनुष्य के निर्माण के लिए प्रयत्नशील है , जो अपने मस्तिष्क की खिड़कियों को चारों दिशाओं में खोल कर रखता है और तर्क तथा विवेक से निर्णय लेने में विश्वास करता है ।
थियोसॉफिकल सोसायटी की स्थापना 1875 में रूसी मूल की महिला ब्रह्मविद्या की महान साधिका मैडम ब्लेवेट्स्की ने अमेरिका में अमेरिका निवासी कर्नल ऑलकॉट* के साथ मिलकर की थी। मैडम ब्लेवेट्स्की का संबंध उन महात्माओं से रहा, जो चिर यौवन के प्रतीक थे तथा समाज को उच्च और उदात्त जीवन मूल्यों के आधार पर गठित करने में जिनकी विशेष रूचि थी। थियोसॉफिकल सोसाइटी को जहाँ मैडम ब्लेवेट्स्की की असाधारण शक्तियों से संपन्न नेतृत्व मिला ,वहीं एनी बेसेंट , लेड बीटर और जे. कृष्णमूर्ति जैसी महान वैचारिक विभूतियों का उत्तराधिकार प्राप्त हुआ, जिन्होंने थियोसोफिकल सोसायटी के माध्यम से विश्व को अद्भुत प्रेरणा प्रदान की।
थियोसॉफिकल सोसायटी एकमात्र ऐसी संस्था है ,जिसका प्रथम उद्देश्य जाति, धर्म, स्त्री, पुरुष तथा रंग के भेदभाव को अमान्य करना है अर्थात जातिवाद में तथा धार्मिक संकीर्णता में थियोसोफिकल सोसायटी का विश्वास नहीं है । आजकल के समाज में जबकि चारों तरफ जातिवाद का बोलबाला है तथा जातिवाद के आधार पर ही न जाने कितने संगठन बने हुए हैं तथा जिनकी भ्रातृत्व की परिधि केवल उनकी जाति तक सिमटी हुई है , ऐसे में थियोसोफिकल सोसायटी प्रेरणा के एक ऐसे प्रकाश पुंज के रूप में नजर आती है जो सब प्रकार की संकुचितताओं से मुक्ति की ओर हमें अग्रसर करने में समर्थ है । धर्म के नाम पर भी मनुष्य- समुदाय का विभाजन कम नहीं हुआ है बल्कि कहना चाहिए कि धर्म के आधार पर जितने रक्तपात अनेक शताब्दियों से मानव सभ्यता ने देखे हैं , उतने शायद ही किसी और कारण से हुए होंगे । धर्म के संकुचित और कट्टर दृष्टिकोण को अपनाने के बाद व्यक्ति पागल हो जाता है, अच्छे और बुरे की पहचान खो देता है और वह इतना पतित हो जाता है कि अपने और पराए की पहचान भी केवल धर्म के आधार पर ही करने लगता है । वह अपने धर्म के मानने वालों को अपना मित्र तथा दूसरे धर्म के मानने वाले व्यक्तियों को अपना शत्रु तक समझने लगता है। यहाँ तक कि उनकी हत्या करने तक पर उतारू हो जाता है। धार्मिक दंगों में लोगों की दुकानें जलाना, मकानों को जलाना, बसों और गाड़ियों को आग के हवाले कर देना तथा अनेक लोगों को मौत के घाट उतार देना , यह सब इसीलिए है कि हम धर्म की संकुचित परिधियों में कैद हैं। थियोसोफिकल सोसायटी की विशेषता जाति और धर्म की संकीर्णता से परे एक चिंतनशील मनुष्य- समुदाय का निर्माण करना है।
थियोसॉफिकल सोसाइटी ने स्त्री और पुरुष की समानता को भी स्वीकार किया है अर्थात विश्व के अनेक हिस्सों में जहाँ बालक और बालिकाओं के साथ भेदभाव होता है, स्त्रियों को घर की चारदीवारी में कैद करके रखा जाता है, उन्हें आगे बढ़ने के पर्याप्त अवसर नहीं मिलते तथा एक नहीं बल्कि दसियों प्रकार से उनका शोषण और उत्पीड़न पुरुष- प्रधान समाज के द्वारा किया जाता है , थियोसॉफिकल सोसाइटी ने उन सब मान्यताओं को अस्वीकार करके एक ऐसा विश्व सृजित करने का बीड़ा उठाया, जिसमें स्त्री और पुरुष कंधे से कंधा मिलाकर समानता के आधार पर उज्जवल भविष्य की ओर सक्रिय हों। मनुष्य समुदाय को समानता के आधार पर संगठित करना तथा उनको विचारों के खुले आकाश में ले जाना , यह थियोसॉफिकल सोसाइटी का विश्व समुदाय को सबसे बड़ा योगदान है।
थियोसॉफिकल सोसायटी उस खुले आकाश में मनुष्य समुदाय को ले जाना चाहती है , जो तर्क की कसौटी पर खरा उतरे । इसलिए स्वाभाविक है कि थियोसॉफिकल सोसायटी ने धर्म , दर्शन और विज्ञान के तुलनात्मक अध्ययन को प्रोत्साहित देना अपने तीन उद्देश्यों में एक उद्देश्य स्वीकार किया है। विज्ञान की उपस्थिति धर्म को बुद्धि – सम्मत बनाती है ।इसमें धर्म की वह मान्यताएँ जो गप्पबाजी ,कपोलकल्पना तथा अतिशयोक्तियों से भरी हुई हैं तथा जिनको कोई भी चिंतनशील मस्तिष्क स्वीकार नहीं कर सकता , उसे थियोस्फी भी स्वीकार नहीं करती । धर्म विज्ञान सम्मत होना चाहिए अर्थात विज्ञान की कसौटी पर धर्म को खरा उतरना अनिवार्य है। दर्शनशास्त्र की भी अपनी एक अलग ही गरिमा है । दर्शनशास्त्र हमें धर्म के खुले आसमान की सैर कराता है और सच बात तो यह है कि संसार में शायद ही कोई आध्यात्मिक महापुरुष ऐसा हुआ हो, जो अपने आप में एक महान दार्शनिक न हो । अतः धर्म ,दर्शन और विज्ञान इन तीनों के मेल से ही वास्तविक धर्म का अध्ययन संभव हो सकता है।
थियोसोफिकल सोसायटी का ध्येय प्रकृति के अज्ञात नियमों तथा मानव में अंतर्निहित शक्तियों का अनुसंधान करना है ,जो कि अपने आप में एक न केवल बहुत बड़ा उद्देश्य है अपितु यह थियोसॉफिकल सोसाइटी के विचारों को विराटता प्रदान करता है। यह बताता है कि जो कुछ हमें ज्ञात हुआ है , वह अपने आप में पूर्ण नहीं है तथा अभी रास्ते और भी हैं तथा उन रास्तों पर चलने का काम बहुत कुछ बाकी बचा हुआ है।
प्रकृति के अज्ञात नियमों का अनुसंधान करना इसी बात को दर्शाता है कि अभी हमने प्रकृति को पूरी तरह से नहीं समझा है। प्रकृति कुछ नियमों के आधार पर संचालित हो रही है , इसे अभी और गहराई से समझना बाकी है । पहाड़ , नदियाँ, समुद्र , सूर्य ,चंद्रमा, आकाश इन सब में न जाने कितनी छिपी हुई रहस्य की बातें हैं । बदलते हुए मौसम , मनुष्य की आयु और पेड़- पौधे, तरह-तरह के पशु- पक्षी इन सब का अस्तित्व क्या कोई विशेष नियमों की ओर हमें आकृष्ट कर सकता है ? थियोसॉफिकल सोसाइटी सारी संभावनाओं को स्वीकार करती है । केवल इतना ही नहीं, न केवल प्रकृति के रहस्यों को हमने पूरी तरह नहीं समझा है बल्कि मनुष्य को भी हम उसके भीतर से पूरी तरह कहाँ समझ पाए हैं ? विज्ञान ने तथा मेडिकल साइंस में जो तरक्की की है ,वह अपने आप में महत्वपूर्ण तो है लेकिन अभी भी शरीर के भीतर के रहस्यों को बहुत कुछ जानना बाकी है । जिस तरह एक व्यक्ति जब एमबीबीएस की पढ़ाई करने जाता है और पहले या दूसरे वर्ष में पढ़ता है तब उसको लगता है कि मुझे बहुत कुछ आता है लेकिन जब वह एमबीबीएस की पढ़ाई पूर्ण कर लेता है , तब उसको लगता है कि मुझे अभी किसी एक विषय में पारंगत होने की नितांत आवश्यकता है । शरीर के भीतर कितने रहस्य हैं ,इसको हम ऐसे ही समझ सकते हैं जैसे हमारी जेब में जो मँहगा मोबाइल रखा हुआ है,उसके तमाम फंक्शनों से हम अपरिचित हैं । हम उसकी केवल कुछ प्रतिशत विशेषताओं का ही उपयोग कर पाते हैं तथा शेष रहस्य की भूल भुलैया में ही छिपा रह जाता है ।
आत्मा की अमरता को थियोसॉफिकल सोसायटी ने स्वीकार किया है और मनुष्य को अपना भाग्य विधाता माना है । थियोसॉफिकल सोसायटी मनुष्य पर भरोसा करती है और किसी भी बाहरी प्रभाव की तुलना में मनुष्य के पुरुषार्थ को सर्वोपरि महत्व देती है। जहाँ एक विचारधारा यह चलती है कि मनुष्य का भविष्य पहले से ही निश्चित है तथा उसमें कोई परिवर्तन नहीं किया जा सकता , वहीं दूसरी ओर थियोसॉफिकल सोसायटी अपना दृष्टिकोण यह रखती है कि मनुष्य अपने सुख और दुख का नियंत्रक है ,वह अपने वैभव और पराभव का निर्माता है , वह अपना भाग्य विधाता है ।
इसी बिंदु पर एक बहुत बड़ा रहस्य मनुष्य समुदाय को सौंपने का कार्य थियोसॉफिकल सोसायटी के द्वारा होता है। थियोसॉफिकल सोसायटी इस महान सत्य से हमें परिचित कराती है कि एक जीवनदाई तत्व होता है और यह जीवनदाई तत्व हमारे भीतर भी है और हमारे बाहर भी है तथा यह सब जगह है।
यह जीवनदाई तत्व अविनाशी है और नित्य कल्याणकारी है । जीवनदाई तत्व जैसा कि नाम से स्पष्ट है, जीवन देने वाला अथवा जीवन से भरा हुआ तत्व है । इतनी विशेषताओं से युक्त होने के कारण यह स्वभाविक है कि हर मनुष्य इसे जानने और समझने की इच्छा करेगा। सोसाइटी का यह कहना महत्वपूर्ण हो जाता है कि हम इस जीवनदायी तत्व को इंद्रियों के माध्यम से पहचान नहीं सकते। थियोसॉफिकल सोसायटी कहती है कि जो इसकी अनुभूति की इच्छा करता है ,उसके लिए यह अनुभवगम्य भी है ।
यह स्थिति केवल ध्यान के माध्यम से ही धीरे-धीरे प्रगति करके कोई साधक प्राप्त कर सकता है । जीवनदाई तत्व अनुभव का विषय है ।यह सृष्टि में चारों ओर फैला हुआ है । इसे हम देख नहीं सकते ,छू नहीं सकते , कानों से सुन भी नहीं सकते। लेकिन फिर भी यह न जाने कैसे हमारे अनुभव में आ जाता है और हम इसको महसूस करने लगते हैं।
ध्यान के संबंध में एक महत्वपूर्ण पुस्तक “मेडिटेशन इट्स प्रैक्टिस एंड रिजल्ट्स” कुमारी क्लारा कॉड द्वारा अंग्रेजी में लिखित है , जिसका हिंदी अनुवाद दिसंबर 1954 के प्रथम संस्करण के रूप में थियोसॉफिकल सोसायटी बनारस द्वारा प्रकाशित किया गया है । पुस्तक ध्यान के संबंध में थियोसॉफिकल सोसायटी की एक अनुपम देन है । मैंने इसकी समीक्षा” भारत समाज पूजा : एक अध्ययन” नामक पुस्तक में वर्ष 2012 में प्रकाशित की थी ।
मात्र 40 पृष्ठों की एक अद्वितीय पुस्तक जे. कृष्णमूर्ति द्वारा लिखित” एट द फीट ऑफ द मास्टर” है । इसका हिंदी अनुवाद “श्री गुरुदेव चरणेशु” नाम से सर्वश्री पंड्या बैजनाथ तथा रवि शरण वर्मा ने किया है मैंने इसकी समीक्षा अपनी पुस्तक “सत्य की खोज “2013 में प्रकाशित की थी।
एनी बेसेंट का थियोसॉफिकल सोसायटी में विशेष स्थान है। उनके संबंध में मेरी एक कविता इस महान साधिका के जीवन से काफी संक्षेप में पाठकों को परिचित करा सकती है ।यह भी “सत्य की खोज” पुस्तक में प्रकाशित है
थियोसोफिकल सोसायटी एक ऐसे मनुष्य के निर्माण की आकांक्षी है ,जो जीवनदायी तत्व को अनुभव कर सके और मानवीय विकास की सर्वोच्चता के शिखर पर पहुँच सके।
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लेखक : रवि प्रकाश , बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश )
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