तृष्णा का असर
अगर तृष्णा रहे मन मे शोक सन्ताप उपजाए।
दुखों का मूल बनकर के, सदा मानव को तड़पाए।।
मुक्त तृष्णा से हो मानव ,सभी दुख दूर होजाएँ,
पड़ी मझधार में नइया कि भव से पार होजाए।।
अगर तृष्णा मिटे मन से तभी मन शुद्ध होता है।
सदाचारी बने मानव न पथ अवरुद्ध होता है।।
जहाँ समता है मानवता ज्ञान के दीप जलते हैं,
करे जाग्रत जो प्रज्ञा को वही तो बुद्ध होता है।।