तू साध निशाना
मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
भेद सका न अब तक कोई,
एक साध निशाना तू ऐसा ।
…. विवेक दुबे “निश्चल”°©..
मंजिल से पहले घबराना कैसा ।
बीच राह तेरा थक जाना कैसा ।
भेद सका न अब तक कोई,
एक साध निशाना तू ऐसा ।
…. विवेक दुबे “निश्चल”°©..