तुम पथ भूल न जाना पथिक
शीर्षक -तुम पथ भूल न
जाना पथिक!
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जीवन के खिले उपवन में,
खुश्बू से भरा कण-कण होगा।
पुष्पों में अलि गुंजित होंगे,
और कलियों में यौवन होगा?
कलियों का घूंघट खुलने में —
तुम पथ भूल न जाना पथिक !
कांटे भी पथ में होंगे तेरे,
पथरीले,दुर्गमता के पथ होंगे।
पर तुम साहस मत खोना —
घने वृक्ष और सुंदर निर्झर भी होंगे!
लेकिन! तुम निर्झर की सुंदरता में –
अपना पथ न भूल जाना पथिक !
वेदना भरे हुए हृदय में,
घन कहीं कड़क रहे होंगे।
प्रिय!मिलन की आस लिए,
नैना बहुत तरस रहे होंगे?
तब मिलन के इंतजार में –
कहीं पथ भूल न जाना पथिक!
जब तेरी सभी अभिलाषाएं,
क्षण भर में ढह जाएंगी।
तब मन के कोने में केवल,
यादें ही सिर्फ़ रह जाएंगी?
जब तुम उन यादों में—
अपना पथ भूल न जाना पथिक!
सुषमा सिंह*उर्मि,,
कानपुर