तुम क्या जानो
तुम क्या जानो मैं समय बचाकर, कैसे कविता लिखता हूँ ,
मन में आस लिए अपने, एक नया विचार मैं भरता हूँ ।
फिर सारा काम खत्म करके मैं, यह लेखन तैयार करता हूँ,
और तब उसपर कुछ चिंतन कर, मैं भावपूर्ण कविता लिखता हूँ ।।
थोड़ा समय बचाकर मैं, कोई एकांत जगह पकड़ता हूँ,
जहाँ तकलीफ न हो हमें, उस जगह पर जाकर लिखता हूँ ।
जो मुझको डिस्टर्ब करे, मैं उसपर खूब अकड़ता हूँ ।।
सब लोग कहते हैं मुझको, इसका काम धाम कुछ है नहीं,
जब देखो तब कविता, जब देखो तब कविता ।
ऐसी फटकारें रोज मैं, हमेशा सबकी सुनता हूँ ।
तुम क्या जानो मैं समय बचाकर, कैसे कविता लिखता हूँ ।।
कविता लिखने की चाहत मैं, कुछ ज्यादा ही रखता हूँ,
इसीलिए मोबाईल हाथ में लेकर, शब्दकोष में खो जाता हूँ ।
फिर नोटपैड खोलकर उसमें, सटीक शब्दों को गढ़ता हूँ ।
तुम क्या जानो मैं समय बचाकर, कैसे कविता लिखता हूँ ।।
कवि – मनमोहन कृष्ण
तारीख – 25/04/2023
समय – 02 : 13 (रात्रि)