कैलाशा
तेजोमय तेजस रूप तिहारा , ओजोमय ओजस रूप तिहरा
सकल ब्रह्मांडों के तुम स्वामी , श्री चरणों में प्रणाम हमारा ||
समस्त लोक तोहे नित ध्याएं, तेरे ही गुणों को नित गाएं
स्तुति करते नाथ तुम्हारी, आप लगाओ भव सागर पारा ||
तुम अलौकिक प्रकाश पुंज हो , सतत ऊर्जा का कुंज हो
ध्यान योग का अर्थ मूल तुम, अध्यात्म सकल हो विस्तारा ||
तुमसे ब्रह्मांड सुशोभित सारे, तुमसे ही प्रभा चंद्र औ तारे
हिम शिखर झरने और झीलें, तुमसे सागर और किनारा ||
शिव शिवत्व तुम कैलाशा, भु नभ जल समीर प्रकाशा
तुमसे प्रखर शब्द संहिता, तुम ही ज्ञान विज्ञान आधारा ||
स्वर तरंग दृश्य अदृश्य, लिपि शिल्प कला और विषय
उकरित तुम हस्त अंगुल, अंकित तूम ही वुद्धि विचारा ||
कण कण तुम ही सर्वज्ञ समाये, तुम सर्वगुण संपन्न कहाए
हे पूर्ण अजय अन्तर्यामी , हरौ नाथ मम क्लेश विकारा ||
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