तुम्ही हो
तुम्ही हो मालिक,
तुम्ही खुदा हो,
तुम्ही इस जगत के,
जगत पिता हो।
तुम्ही हो अम्बर,
तुम्ही धरा हो,
तुम्ही जीवन के,
मात-पिता हो।
तुम्ही हो दाता,
तुम्ही ईश्वर हो,
तुम्ही ह्रदय के
अध्यात्म देवता हो ।
तुम्ही हो संत,
कबीर पंत तुम्हीं हो,
तुम्ही निराकार,
साकार भी तुम्ही हो ।
तुम्ही गुरु हो,
ज्ञान भी तुम्ही हो,
करें वंदन तुम्हारी,
मेरी पहचान तुम्ही हो।
हे भगवान ! कृपा तुम्हारी,
बनी रहे सदा साथ हमारे,
शीश झुकाऊंँ हाथ जोड़ कर,
इतनी है अरदास हमारी।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश
मौदहा हमीरपुर ।