Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Jul 2021 · 6 min read

तुम्हारा राम

“कजरी, कजरी….! अरी ओ कजरी।” कजरी की पड़ोसन झूमरी खुशी से चहकती हुई कजरी के आँगन में आयी।

“अरे, का हुआ ? काहे सुबह-सुबह गला फाड़ रही है।”
चापानल पर बर्तन साफ करती कजरी चिल्लायी।

“अरे, तू सुन तो सही। ऐसी खबर लायी हूँ कि सुनकर तू भी चहक उठेगी।”

“अच्छा ! ऐसन का बात है जो…?”

“जानती है अभी ना, चंदन का फोन आया था।”

“हाँ, तो ई कौन नया बात है जो। तुम्हारा मरद है, रोज ही फोन करता होगा… दिन में दस बार।”

“पर आज बात कुछ अलगे है। वो घर आ रहा है, कल शाम तक आ जाएगा और साथ में वो भी आ रहा है…।”

“एतना जल्दी आ रहा है। दू महीना पहले तो गया ही था।
अच्छा, साथ में और कौन आ रहा है जो तू बौरा रही है ?”

“अरे, सब जगह एगो नया बीमारी फैल रहा है ना….करोना। इसलिए आ रहा है अपना गाँव-घर और तुम्हारा मरद मुरली भी तो आ रहा है चंदन के साथ ही।”
सुनकर कजरी का दिल धड़क उठा। खुशी की एक लहर-सी दौड़ गई बदन में, जो नाराजगी और गुस्से से वर्षों से अंदर कहीं दबी थी। और शायद वह अभी इसे झूमरी के सामने प्रकट नहीं होने देना चाहती थी, इसीलिए झिड़क कर बोली,

“काहे, सुबह-सुबह मज़ाक करके हमरा जी खट्टा कर रही है झूमरी?”

“अरे, हम सच कह रहे हैं।”

“उसका यहाँ है ही कौन ? अम्मा न बाबू, न भाई न बहिन।” कजरी ठंडी आहें भरती हुई बोली।

“देख कजरी, अब आ रहा है तो आने दे। तू अपना मन मलिन न कर। क्या पता उसका मन बदल गया हो।”

” ना रे झूमरी। हम मन मलिन नहीं कर रहे हैं। पर उससे हमको अब कौनो उम्मीद भी नहीं है। हम उसके लिए तो उसी दिन मर गए थे जब से वो उस सरदारनी के चक्कर में फंसा।
पूरे तीन साल हो गए मेरे पेट में अपना निशानी देके चले गए पंजाब। शुरू-शुरू में तो फोन भी करता था, हाल-समाचार भी पूछता था। पर धीरे-धीरे सब बंद। वहाँ वह क्या-क्या करता है सारी काली करतूत बताया है हमको मेरे गाँव का सरदीप। जब इतने दिन सुध नहीं लिया तो अब क्या…?
आ रहा है तो डीह-डामर बेच के ले जाएगा।” कहते हुए कजरी के चेहरे पर नाराजगी और चिंता की लकीरें उभर आई।

” अरे, तू चिंता छोड़। पहले देख तो सही वो करता क्या है आगे। हम सब हैं तुम्हारे साथ। अच्छा! अब हम जाते हैं।”

“अच्छा ! चल ठीक है। हमको भी बहुत काम है अभी।”
झूमरी के जाते ही वह झट से कमरे में गई और एक नज़र सोते हुए अपने बेटे पर डाल कर मुस्कुराई और खुद को आईने में निहारते हुए सोचने लगी-
‘क्या मैं वैसी दिखती हूँ कि मेरा मरद मुझसे प्यार करे और मुझे छोड़कर कभी न जाए। मुझसे ढ़ेर सारी बातें करें, मुझे समझे। क्या सचमुच मुझमें इतना आकर्षण नहीं ? मेरे प्रेम में इतनी ताकत नहीं ? जो उन्हें खुद से बाँध कर रख सके।
क्या अपने बेटे के लिए भी उतना ही कठोर होगा जितना मेरे लिए है ? जो भी हो, जैसे भी हो; बस वो सही सलामत घर आ जाएँ ।’
यूँ तो कजरी को मुरली से बहुत-सी शिकायतें थीं।
गुस्सा और नाराजगी थी। लेकिन मन के किसी कोने में उसके प्रति प्रेम का एक अथाह सागर भी था, जिसके लहरों को कोई महसूस करने वाला ही नहीं था।
अगली सुबह कजरी जल्दी से जग गई। उसने नहा-धोकर पूजा-पाठ की और घर में राशन-पानी का जायजा लिया । हालांकि सब-कुछ तो पहले ही ले आई थी, क्योंकि लाकडाउन में तो बाहर जाना नहीं था। पर मुरली आ जाता तो उतना-सा राशन प्रर्याप्त नहीं था। तो कजरी झटपट दुकान गई और जो कुछ कमी थी ले आयी। बेटे को भी नहला-धुला कर साफ-सुथरा कपड़े पहनायी। गाय को भी झटपट सानी-पानी लगा दी। खाना पका तो ली,पर उससे ठीक से खाया नहीं गया। उसके मन में अजीब-सी बेचैनी थी। आज वक्त काटे नहीं कट रही थी। कभी आंगन तो कभी द्वार पर जाती। बार-बार आईने में खुद को देखती तो कभी झूमरी के आँगन में झाँकती।
‘शाम हो गई, अंधेरा घिर आया, पर अभी तक…। अच्छा, झूमरी से पूछ आते हैं।’ सोचती हुई वह झूमरी के आंगन गयी।
तभी हड़बड़ाते हुए झूमरी का देवर किशना भी आया-
“अरे भौजी, जानती हो गाँव में भी अब पुलिस की गाड़ी घूम रही है। सबको अपने ही घर में रहने बोल रहा है। सबको दूरे-दूर रहना है। बहुते खतरनाक बीमारी है, छूने से और फैलता है। और हाँ, बाहर से मतलब दिल्ली, पंजाब, हरियाणा सब से जो भी वापस आ रहा है ऊ सब को गाँव के बाहरे स्कूल में चौदह दिन के लिए रखा जा रहा है। ताकि किसी को बीमारी- ऊमारी हो तो उसका पता चल सके और गाँव में दूसरे आदमी क़ो न फैले।”
“तब तो हम भी जाते हैं, अपने घरे में रहेंगे।” बोलती हुई कजरी वापस मुड़ी।

“जऊन बात जानने आई थी ऊ बात तो जान ले कजरी, तब चली जाना।” झूमरी ने रोका।
पर वह वापस न आकर वहीं रुक गई।
“हाँ भौजी! और एक बात, हम तो बताना ही भूल गये। चंदन भैया और मुरली भैया दोनों आ गए हैं। लेकिन अभी ऊ ना इधर आ सकेंगे और ना इधर से कोई उधर जा सकते हैं। सब स्कूल पर हैं। खाने-पीने का सब इंतजाम है, कौनो चिन्ता की बात नहीं है।” किशना ने बताया।
सुनकर उसकी धड़कन बढ़ गई और वह वहां से तेज़ी से वापस आ गयी।
‘आखिर वह आ ही गया। भले ही चौदह दिन स्कूल में रहे, पर गाँव तक तो आ ही गया। जहाँ तीन बरस बीत गए तो चौदह दिन भी बीत ही जाएंगे। वो भले ही थोड़े दिनों के लिए आया हो, पर आया तो…। साथ तो उसने ही छोड़ा था मेरा, मैंने तो नहीं।’ रात भर इन्हीं बातों में उलझी रही वह।
अगली सुबह वह बिना कुछ सोचे-समझे बेटे को गोद में लेकर सीधे स्कूल की तरफ बढ़ गई।
“हे, हे…रुक! कहाँ जा रही है उधर ? फ़ौरन अपने घर जाओ वापस।” एक पुलिस वाला ने डपटते हुए कहा।
“साहब, कहीं नहीं जाएँगे साहब। बस दूर से ही देख लेते एक बार, बस एक बार…।” कजरी गिड़गिड़ाने लगी।

“क्या देख लेगी, हाँ ? कोई तमाशा हो रहा है इधर ? चल भाग, देख रही है डंडा।”

“ठीक है साहब, जा रहे हैं। आप क्या समझोगे हमरा दर्द।
तीन साल से अपने मरद का चेहरा देखने को तरस गए हैं।” उसकी आँखें डबडबा गईं।

“अच्छा, सुनो। क्या नाम है तुम्हारे पति का ?”

“जी, मुरली नाम है।”

“और तुम्हारा ?”

“कजरी।”

“यहाँ आकर खड़ी रहो और ये लो एक मास्क खुद बाँध लो, एक बच्चे को बाँध दो।”
पुलिस वाले ने उसे स्कूल के गेट से दो मीटर दूर ही खड़ा रहने को कहकर स्कूल के अंदर गया।

थोड़ी देर में मुरली बाहर आया और पुलिस के कहे मुताबिक गेट पर ही रहा और कजरी को एकटक देखता रहा।
उसके चेहरे पर अपराधबोध साफ झलक रहा था। कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा था वह। बस आँखें बही जा रही थीं।
और कजरी की तो मानो धड़कन ही थम गई थी। उसके आँख का आँसू भी थमने का नाम ही नहीं ले रहा था।
मिलन की इस घड़ी में बेटे की मासूम निगाहें कभी माँ को देखती तो कभी पिता को।
मुरली ने बेटे को हाथ से इशारा किया और प्यार भरी नजरों से देखा तो वह उसकी ओर लपका। परंतु कजरी ने रोक लिया।

“चलो, जाओ अब। आइंदा घर से बाहर मत आना। सबकी सुरक्षा के लिए यह जरूरी है।” पुलिस की कड़क आवाज आई।

कजरी आँखें पोंछती हुई वापसी के लिए मुड़ गई।

“कजरी…”

मुरली की आवाज सुन कजरी के क़दम रुक गए। उसने पलटकर देखना चाहा, पर हिम्मत न हुई।

” मुझे माफ़ करना कजरी। तुम्हारा राम अपनी सीता के बिना ही वनवास चला गया था और रास्ता भी भटक गया था। परंतु अब वापस आ गया है, कभी वापस नहीं जाने के लिए।”
सुनकर कजरी किसी तरह खुद को संभालती घर की ओर भागी और मुरली स्कूल के अंदर।

स्वरचित एवं मौलिक
रानी सिंह

3 Likes · 4 Comments · 608 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
अब बहुत हुआ बनवास छोड़कर घर आ जाओ बनवासी।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
सुना है नींदे चुराते हैं ख्वाब में आकर।
सुना है नींदे चुराते हैं ख्वाब में आकर।
Phool gufran
नदी किनारे
नदी किनारे
Dr. Ramesh Kumar Nirmesh
आजादी का जश्न मनायें
आजादी का जश्न मनायें
Pratibha Pandey
प्रीति
प्रीति
Mahesh Tiwari 'Ayan'
दु:ख का रोना मत रोना कभी किसी के सामने क्योंकि लोग अफसोस नही
दु:ख का रोना मत रोना कभी किसी के सामने क्योंकि लोग अफसोस नही
Ranjeet kumar patre
यूँ तो सब
यूँ तो सब
हिमांशु Kulshrestha
(विकास या विनाश?)
(विकास या विनाश?)
*प्रणय*
जगतजननी माँ दुर्गा
जगतजननी माँ दुर्गा
gurudeenverma198
रमेशराज की पिता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
रमेशराज की पिता विषयक मुक्तछंद कविताएँ
कवि रमेशराज
आओ बाहर, देखो बाहर
आओ बाहर, देखो बाहर
जगदीश लववंशी
नेता
नेता
surenderpal vaidya
आपकी बुद्धिमत्ता को कभी भी एक बार में नहीं आंका जा सकता क्यो
आपकी बुद्धिमत्ता को कभी भी एक बार में नहीं आंका जा सकता क्यो
Rj Anand Prajapati
মহাদেবকে নিয়ে লেখা কবিতা
মহাদেবকে নিয়ে লেখা কবিতা
Arghyadeep Chakraborty
सज गई अयोध्या
सज गई अयोध्या
Kumud Srivastava
कितना कुछ बाकी था
कितना कुछ बाकी था
Chitra Bisht
मैं कभी किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता
मैं कभी किसी के इश्क़ में गिरफ़्तार नहीं हो सकता
Manoj Mahato
*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
*कहॉं गए वे लोग जगत में, पर-उपकारी होते थे (गीत)*
Ravi Prakash
*बादलों की दुनिया*
*बादलों की दुनिया*
सुरेन्द्र शर्मा 'शिव'
ശവദാഹം
ശവദാഹം
Heera S
एक ऐसा दोस्त
एक ऐसा दोस्त
Vandna Thakur
"बे-दर्द"
Dr. Kishan tandon kranti
कुछ लड़के होते है जिनको मुहब्बत नहीं होती  और जब होती है तब
कुछ लड़के होते है जिनको मुहब्बत नहीं होती और जब होती है तब
पूर्वार्थ
लेकिन क्यों
लेकिन क्यों
Dinesh Kumar Gangwar
सिर्फ वही इंसान शिक्षित है, जिसने सीखना और परिस्थितियों के अ
सिर्फ वही इंसान शिक्षित है, जिसने सीखना और परिस्थितियों के अ
इशरत हिदायत ख़ान
वक्त गर साथ देता
वक्त गर साथ देता
VINOD CHAUHAN
मायने रखता है
मायने रखता है
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
The Enemies
The Enemies
Otteri Selvakumar
हक़ीक़त ने
हक़ीक़त ने
Dr fauzia Naseem shad
4279.💐 *पूर्णिका* 💐
4279.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
Loading...