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21 Aug 2024 · 1 min read

हम भी कैसे….

नव-गीत

हम भी कैसे
पागल जैसे भी
हॅंसते रोते हैं….

होश संभाला
जब से हमने
देखा बंटवारा
देश बंटा
आरक्षण लाकर
बांटा भाई चारा ।

राजनीति के दलदल में
कुछ विष पीकर जीते हैं..

एक संगठित
ग्राम इकाई
टुकड़े टुकड़े टूटी
दलगत राजनीति में फंसकर
राष्ट्रीय एकता
फिरती रूठी रूठी…

धर्म निरपेक्ष देश बताकर
बहुमत को अल्प किये हैं….

न्याय को
अन्याय मानता
अन्याय को न्याय
नेता अपने पाखंडों से
खेत खेत में
बोते हाय…

जाति-पाति के बिछे दर्प पर
आपा खोते हैं…

हम भी कैसे
पागल जैसे
हॅंसते रोते हैं ।

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