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16 Oct 2021 · 1 min read

तुम्हारा प्रेम

कभी नहीं चाहा था
तुम्हें पकड़ना या कैद करना
मैं चाहती थी ..
कण-कण में
समाहित हो जाओ तुम..
गुनगुनाओ..
जल की निश्छल बूॅंदों के साथ
लिपट जाओ मेरे हर लम्हें से
चंदन की सुगंध की तरह..
तुम्हारा प्रेम अभिसिंचित कर जाता है
मेरे मन की हर बंजर सोच को
और दे जाता है
एक नया अर्थ
अनुभवों की चिटकी मृदा को..

रश्मि लहर
लखनऊ

Language: Hindi
152 Views
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