* तुगलकी फरमान*
सोच रहा हूं बैठकर,
कौन बनाता है यह, अजीबो गरीब तुगलकी फरमान?
जिसमें न सहूलियत आम जनता की,
न चिंता दुःख दर्द का एहसास,
न जमीन से जुड़ी हकीकत,
न कर्मचारियों की बात।
कहीं लोकतंत्र में तानाशाही की बू तो नहीं?
या सलाहकार होशियार है,
या एसी में जाड़े गर्मी का कोई पता नहीं।
नियम बनाए ही क्यों जाते हैं,
तुरंत बदलने के लिए,
गरीब आम जनता कर्मचारियों को,
परेशान करने के लिए,
आकाओ की हां में हां करने के लिए,
या फिर जनता में खलबली,
अपनी वाह वाही करने के लिए,
खुद दुष्यन्त कुमार है इस बात से परेशान,
कौन बनाता है यह, अजीबोगरीब तुगलकी फरमान।।