#रुबाइयाँ
प्यार तुम्हारा कैसे भूलें , रूह छिपाए हर मंज़र।
बिना तुम्हारे दिल की धरती , लगती हमको है बंजर।।
बिन पानी के सागर सूना , बिन ख़ुशबू फूल अधूरा;
बिन तेरे लम्हा-लम्हा मानो , चला रहा कोई खंज़र।।
सावन बन जीवन में मेरे , प्रेम-बूँद बरसाई थी।
भिगा दिया था तन-मन मेरा , चाहत हृदय जगाई थी।।
घर-आँगन में हँसी तुम्हारी , ऐसे गूँजा करती थी;
प्रेम सुरों का लेकर जैसे , बजती इक शहनाई थी।।
प्यार तुम्हारा पाकर मैं तो , ख़ुद को ही भूल गया था।
देख-देख कर सुंदर मुखड़ा , ख़ुशियों में फूल गया था;
मीठी बातें ज़ुल्फ़ी छाया , मौज़ मस्तियाँ आँखों की;
ज़ादू मुझपर ऐसा करती , बिन झूले झूल गया था।।
हर मुश्क़िल ही तुमसे मिलकर , जीवन से भाग गयी थी।
ऐसा लगता तुम आई तो , क़िस्मत ही जाग गयी थी।।
लगते दिन-रात सुहाने थे , मस्ती के अफ़साने थे;
तेरी उल्फ़त बाँध ख़ुशी का , सिरपर पाग गयी थी।।
#आर.एस.’प्रीतम’
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