“”ताले अपनी तिजोरियों के”” गजल /गीतिका
ताले अपनी तिजोरियों के अब तो खोल दीजिए।
क्यों छुपाए बैठे हो अथाह कमाई के भंडार।
दीन दुखियों के भंडारे के लिए ,कुछ तो तोल दीजिए।।
देखा हैं कई मेहनत कशो को ,हमने सड़क पर घूमते।
दे न सको कुछ उनको तो ,प्रीत के बोल तो बोल दीजिए।।
रोटी कपड़ा मकान ही तो चाहिए, जीवन गुजारे के लिए।
गुजारा होता रहे सबका, मंथन ऐसा टटोल लीजिए।।
बढ़ाती है दूरियां, यह दौलत की तिजोरियां मेरे भाई।
हिस्से में आ जाए बराबर, सबके लिए खोल दीजिए।।
राजेश व्यास अनुनय