ताटंक छंद
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!! श्रीं !!
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ताटंक छंद- 30 मात्रा, 16-14 पर यति, चरणांत 3 गुरु ।
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चैन चुराया नींद छीन ली,श्याम बँसुरिया वाले ने ।
बना लिया दीवाना अपना, उस गोकुल के ग्वाले ने ।।
लुका-छिपी क्यों खेल रहा है, दर्शन अपना देजा रे ।
आकर मन की प्यास बुझा दे, राधा रानी के प्यारे ।।
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शाह द्वारिका वाले सुन ले, हम भी तेरे प्यारे हैं ।
जुआ प्यार का तुझसे खेलें, तू जीता हम हारे हैं ।।
देख कभी तो आकर दिल का, कौना-कौना खाली है ।
तेरे साथ हृदय में बैठी, बरसाने की लाली है ।।
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महेश जैन ‘ज्योति’,
मथुरा ।
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