ताकि वो शान्ति से जी सके
करता रहा हूँ अब तक,
मैं जीने की कोशिश,
सिर्फ अपने लिए,
खुद को जिंदा रखने के लिए,
संजोता रहा हूँ अब तक सपनें,
मैं अपनी खुशी के लिए।
देता रहा हूँ धोखा आज तक,
मैं अपनी असलियत को छुपाकर,
होने को महशूर इस दुनिया में,
कर चुका हूँ अपनों से अलग खुद को,
और संजोये हुए हैं सपनें आँखों में,
मेरे उनसे मिलने के इंतज़ार में।
पूछते हैं पड़ौसी से माँ-बाप
मेरे आने की खबर,
क्योंकि चिराग हूँ उस घर का,
सहारा हूँ उनके बुढ़ापे का,
कर दिया आखिर मुझको पराजित,
उनके प्यार और अपनत्व ने,
बदल दिया है मेरी सोच को उन्होंने।
बनाया है अब ख्वाब मैंने,
उनको दिलाने को इज्जत,
करने को उनका जीवन सार्थक,
ताकि वो कर सके गर्व ,
अपनी सन्तान पर,
और आ गया हूँ उनके पास,
ताकि वो शान्ति से जी सके।
शिक्षक एवं साहित्यकार-
गुरुदीन वर्मा उर्फ जी.आज़ाद
तहसील एवं जिला- बारां(राजस्थान)