तस्वीर हो
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इंसानियत की बनी ऐसी इक तस्वीर हो
काम आ सके किसी के वह तकदीर हो
जो बांटता इंसान को बस जात पात में
मन मिटा दे जो कही भी ऐसी लकीर हो
धन दौलत से हीं नहीं मिटा करते दुख दर्द
जो बांटता इंसान हर किसी की पीर हो
जागीर तो हो पर दिलों की भी हो दौलत
मन रमता कुछ ऐसा जोगी मस्त फकीर हो
नक्शे से मिट जाए जो दरिंदगी का खेल
गली सड़कों पर न लुटती अस्मत की चीर हो
मन से मन की जुड़ी सुख-दुख की हो कड़ी
जिंदगी की कुछ ऐसी संवरती तस्वीर हो