तय हमीं को करना है
सात समन्दर-सा फैला मन,
इसमें क्या-क्या भरना है
तय हमी को करना है ।
कहीं उफनती लहरें देती,
ज्वार सुखों का आ करके।
और कहीं उद्वेग का भाटा,
जीवन-तट पर ला करके ॥
लड़ना है या डरना है ,
तय हमी को करना है…
पन्नग कहीं तो पन्ना भी है,
मीन कहीं तो मोती भी ।
खारेपन का स्वार्थ अधिक है,
कहीं मधुर जल सोती भी ।।
क्या रखना क्या झरना है..
तय हमी को करना है..
काल प्रवेग प्रवाह निरन्तर,
लालच बड़वानल भारी।
लुण्ठक -मोह करे बरजोरी,
है चलने की लाचारी ॥
कैसे जी कर मरना है ,
तय हमीं को करना है .