ठहरना मुझको आता नहीं, बहाव साथ ले जाता नहीं।
ठहरना मुझको आता नहीं, बहाव साथ ले जाता नहीं,
लहरें टकराती हैं मुझसे, पर सागर पास बुलाता नहीं।
सूरज तो सजता है हर दिन क्षितिज पर, लेकिन अंधेरों से मेरे लड़ पाता नहीं,
एक दीया चौखठ पर जलाऊं भी कैसे, कि आँधियों को मेरी वो भाता नहीं।
मोती उम्मीदों के मिलते हैं बहुत, पर वो धागा चाहतों को बुन पाता नहीं,
खफा हो जाऊं अतीत से अब मैं, पर पल आज का मुझको लुभाता नहीं।
शहर बारिश में डूबा पड़ा है, बस बादल है की आँखों तक मेरी पहुँच पाता नहीं,
कहीं दूर एक बंजर भूमि खड़ी है, भावनाओं का द्वन्द अब जिसे रुलाता नहीं।
एक धुंआ है जिसमे सबकुछ छुपा है, और एक सच है जो कोई जान पाता नहीं,
कभी देख पाए खुद की गलती ये इंसा, ऐसा शीशा किसी को नज़र आता नहीं।
जिसे वीरानों की तालाब हो, महफिलों का शोर उससे सहन हो पाता नहीं,
एक रास्ता है जिसपर साथ चलते तो सब हैं, पर जो गिरे तो हाथ को बढ़ाता नहीं।
कहानी वो दिलजस्प बहुत थी कि, वो किरदार खुद को अब बचाता नहीं,
दर्द की निरंतरता हीं ऐसी थी, कि जख्म उसका कभी पूरा भर पाता नहीं।