जो हूँ ये हूँ
लिखता हूँ लिखता रहूँगा मैं सच्ची ओर कड़वी बात,
इसलिए मैं लोगों के दिल मे नागवार ही गुज़रता हूँ,
फ़ितरत सी लगतीं है लोगों की चापलूसी सी,
लगतीं है ग़र आपकों अच्छी तो इसमें मैं क्या कर सकता हूँ,
नहीं बन सकता मैं औरों की तरहाँ मुहँ पे चापलूसी खोर,
ख़ुद्दारी ओर इमां हुक्मराना ही है मेरा वज़ूद,
जो हूँ जैसा हूँ यहीं है यहीं रहेंगा मेरे जीने का अंदाज़,
ग़र बैठा हूँ मैं सामने तो बात सही और मर्य्यादा की ही करुगाँ,
अच्छा लगें बुरा लगें मगर मैं कहीं चुप ना रह सकूँगा,
यदि ग़रआएँ आपकों फ़ितरत समझ हमारी तो मिलना,
वरना मैं दुनियाँ की भीड़ में अकेला ही अच्छा हूँ,
होती नहीं है मुझसे ना जानें क्यों ये चापलूसी,
बात दिल से ओर घर की दहलीज़ अनुसार करता हूँ,
चापलूसी वाले लोगों के दिल सदैव काले-मेले होते है,
दिल रखता हूँ मैं तो उज़ला ओर सच्चा मेरे इस देह में,
पर धोका ओर फ़रेब से कोई रिश्ता नहीं रखता हूँ,
याद ग़र कर सको तो कर लेना साँसे बाक़ी है,
लगता है ग़र आपकों बुरा तो जनाज़ा उठना बाक़ी है,
ज़्यादा से ज़्यादा ये है आपके हाथ में की,
बुरा समझ मुझकों जनाज़े में ना आओगे मेरे,
परआप जैसे लोगों की भीड़ से अच्छा है तन्हा रहूँ,
जीने चापलूसी पसन्द हो वो लोग ना हो मेरे पीछे,
या रब मेरे मुझें श्मशान तक तन्हा ही ले जाना,
लिखता हूँ मैं लिखता रहूँगा सच्ची कड़वी बात,
नागवार ग़र मैं गुज़रता हूँ तो यारों मुझें माफ़ कर देना।।
मुकेश पाटोदिया”सुर”