जो संतुष्टि का दास बना, जीवन की संपूर्णता को पायेगा।
आवरण ये अंधकार का, प्रकाश का मूल्य बढ़ायेगा,
रात्रि के पहर को लाँघ, वो सूर्य भोर बन छायेगा।
आशाओं का खंडित होना, हृदय की पीड़ा जगायेगा,
पर साहस की पतवार थाम, तू सागर पर लहराएगा।
पथ पर हैं काँटे बिखरे, हाँ लहू से पग सन जायेगा,
सयंम का ना साथ त्यागना, ये गंतव्य से तुझे मिलायेगा।
प्रश्नों के तीक्ष्ण बाणों से, अस्तित्व स्तब्ध रह जाएगा,
जो रणभूमि में अडिग रहा, वो कृष्ण सारथी बन आयेगा।
मेघ घनेरे उठेंगें ऐसे, प्रतिबिंब भी अदृश्य हो जायेगा,
आस की डोर जो थाम चला, तूफानों में दीपक जल जायेगा।
चक्रव्यूह असत्य का ऐसा, जो श्वास को बंदी बनायेगा,
पर सत्य की शाश्वतता से हीं, अस्तित्व निखर ये पायेगा।
हर लक्ष्य की प्राप्ति, एक नया लक्ष्य समक्ष ले आयेगा,
जो संतुष्टि का दास बना, जीवन की संपूर्णता को पायेगा।