जो प्रेम रँग में रँगा हुआ है
नई प्रीति है नई उमंगें,
अवसर का है ‘भाव’ समुन्दर,
भाव जगे हैं हृदय नेत्र से,
अब देखेंगे वह अनन्त पर,
खोजेंगी हर एक नया ढंग,
जग में देखेंगी वह अपनापन,
शनै शनै होगा सब उसका,
जो प्रेम रँग में रँगा हुआ है।।1।।
हिम्मत की ताजा रेखा पर,
कानों में कुछ ध्वनि सी होगी,
मध्यम सा एक हास्य उठेगा,
अपना राग यह दिल भी कहेगा,
नाजुक सा एक स्पर्श प्राप्त कर,
आँखें ही आँखों में डूबेंगी,
एक एक क्षण होगा सब उसका,
जो प्रेम रँग में रँगा हुआ है।।2।।
©अभिषेक पाराशर