जैसा मनोभाव.. वैसी ही दुनिया
किसी के वास्ते ..अमीरों की है दुनिया,
जो करीबी है “रिश्तों की डोर” है दुनिया,
जो रक्षक है धरा पर उनके लिए रण-भूमि है दुनिया,
गर कोई जिम्मेदार है उनके लिए कर्म-भूमि है ये दुनिया,
जो बैठे है यहाँ पर जिनसे इस मंच पर सजावट है उनके लिए.अभिनय है ये दुनिया
जो दिखाई दे वो हरगीज वैसा नहीं होता,
जो जैसा है वो वैसा ही नहीं बिकता,
(रुपान्तरण जरूरी है)
कोई कह दे जरा ! उसकी चाहत क्या है,
(वो सब मिलता है,इस दुनिया मे)
बुरे को बुरा अच्छे लोगों में अच्छाई है,
ये कोई कोई समझता है,
जो समझता है..वो पार हो जाता है,
औरों को क्यों अखरता है ?
न उसमें दोष जैसा कुछ !
खाने वाला हर कोई स्वादिष्ट ही कहता है,
जो बिकता है उसमें नहीं भगवता,
जो बँटता है वो फैल जाता है..उसे प्रसाद कहते है,
वो बाँटने से ही बढ़ता है,
डॉ महेंद्र सिंह खालेटिया,