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8 Oct 2016 · 1 min read

जी का काव्य में प्रयोग

तुम आवाज दे
बुलाते
सूनो जी
मैं जबाब देती जी
कहती बोलो जी
कितना प्रिय लगता
जी कहना
हाँ जी में जी मिलाना

फिर एक मौन
मैं कहती कहो जी
तुम चुप
मैं आती जी
पास तुम्हारे
सटके बैठ जाती जी
शुरू करती कहकर सुनो जी
दिनभर की
तुम अपनी भूल जाते
मेरी ही सुनते जी

जी सम्बोधन में
आत्मीय का भाव छलकता
वही तो बाँधता है तुमको
तभी तो तुम
पुकारते हो मुझे
सुनती हो जी
मैं भी बन तुम्हारी छाया
चली आती हूँ जी
रेशम की डोर सी खींची
जी जी जी जी कहती हूँ
लिपट जाती हूँ जी
तुम्हारे आगोश में
जी कहकर
जी शब्द ही तो मुझे
बनाए मुझे तुम्हारा

जी शब्द की खाद पाकर
ही तो यह
प्रेम वृक्ष पनपा
दीर्घकाय हुआ है
जी आज भी तुम
मेरी आत्मा हो जी
आत्मा और शरीर जैसा
जैसा है सम्बन्ध
क्योंकि जी
एक अभिन्न रिश्ता है
जी आपके साथ
मेरा जी

Language: Hindi
73 Likes · 386 Views
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