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17 Feb 2024 · 1 min read

काश - दीपक नील पदम्

काश ये क़यामत थोड़ा पहले आती,

ख़ुदा की कसम कोई बात बन जाती,

अपनी आँखों में होती चमक सितारों की,

ज़िन्दगी किस कदर बदल जाती ।

यूँही फिरते रहे अंधेरों में,

बेसबब, बेपरवाह यूँही एकाकी,

दीप जलाने का होश तब आया,

जब दीपक से रूठ गई बाती ।

मेरे शहर में नहीं रिवाज़ माना लिखने का,

लबों से भी ये बात कही नहीं जाती,

तुम्हें पता था जब हालातों का,

तुम ही लिख देते कोई पाती ।

तुम तो जाते हो बदलकर रिश्ते,

कैसे ढूंढें कोई नया साकी,

इस तरह जीने से तो अच्छा था,

जान कमबख्त ये निकल जाती ।

(c)@ दीपक कुमार श्रीवास्तव ” नील पदम् “

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