Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
30 May 2024 · 6 min read

राम सीता लक्ष्मण का सपना

राम , सीता और लक्ष्मण का सपना

पूर्णाहुति के पश्चात ऋषि पत्नी मंच पर खड़ी हो गईं ,

“ आप सब अतिथियों को प्रणाम करती हूँ और आभार व्यक्त करती हूँ कि आपने हमारे निमंत्रण का मान रखते हुए , दूर दूर से यहां पधारने का कष्ट किया , और हमारे आश्रम का आतिथेय स्वीकार किया। आज यज्ञ का सातवां तथा अंतिम दिवस है , पूर्णाहुति दी जा चुकी है , पिछले सात दिन दूर दूर से आये विद्व्तजन विभिन्न विषयों पर अपने विचार रखते रहे , जिन्हें आप सबने आदरपूर्वक सुना , अब समय है प्रश्न पूछने का। प्रश्न का अधिकार दिए बिना यह कार्यक्रम पूर्ण नहीं हो सकता। प्रश्न जानने की पहली सीढ़ी है , दूसरों के विचारों का आदर करना , आत्मिक विस्तार की दूसरी सीढ़ी है , उत्तर देना नए प्रश्नों की ओर ले जाने वाला अगला कदम है। इस अर्थ में यहां उपस्थित प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्र है , प्रश्न पूछने के लिए ओर उत्तर देने के लिए भी , औऱ यही हमारे गुरुकुल का लक्ष्य है , हम जीवन में यह अनुभव कर सकें कि प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी अर्थ में हमारा गुरु है , औऱ प्रत्येक गुरु शिष्य भी है। ”

ऋषि पत्नी ने यह कह कर अपना स्थान ग्रहण किया , कुछ पल तक उस वृक्षों से घिरी विस्तृत यञशाला में घिरी शांति , चढ़ते सूरज के साथ जंगल की चुप्पी को और भी गहरा करती रही । फिर पंद्रह वर्ष का एक तेजस्वी युवक खड़ा हुआ ,

“ मेरा नाम भास्कर है , मैं इसी गुरुकुल का शिष्य हूँ , औऱ मेरा प्रश्न राम से है , यद्यपि उन्होंने पिछले सात दिनों मेँ कोई उपदेश नहीं दिया , अपितु अपने भाई के साथ आश्रम की रक्षा का उत्तरदियत्व संभाला है, परन्तु उन्होंने उन सब विद्व्तजनों को सुना है , जिन्हें मैंने सुना है , औऱ मेरे भीतर जो प्रश्न जन्मा है , उसका उत्तर सम्भवतः उन्हीं के पास है , यदि वे आज्ञा दें तो मैं प्रश्न निवेदित करूं !”

राम ने अपना धनुषबाण साथ खड़ी सीता को दे दिया, औऱ स्वयं मंच पर आ गए।

सबको प्रणाम करने के पश्चात उन्होंने कहा , “ पूछो भास्कर , मैं यथासम्भव उत्तर देने का प्रयत्न करूँगा ।”

भास्कर ने प्रणाम करने के पश्चात कहा ,” राम वन मेँ आपकी विनम्रता , उदारता , करुणा , साहस की कथाएं प्रचलित हो रहीं हैं , यहां आपने सबको अपना समझा है , औऱ अपनी पत्नी तथा भाई के साथ अपनी कुटिया के द्वार सभी प्रार्थियों के लिए खोल दिए हैं , इसलिए यह अनुमान लगाना कठिन नहीं कि एक दिन आप योग्य राजा बनेंगे, परन्तु आपका जैसा मनुष्य हजारों वर्षों मेँ एक बार जन्म लेता है , परन्तु राज्य औऱ राजा तो निरंतर बने रहते हैं। नगरों मेँ रहने वाले साधारण जन , प्रायः सम्मानपूर्वक जीवन नहीं जी पाते। “

उत्तर देने से पूर्व राम की दृष्टि सीता औऱ लक्ष्मण की ओर गई और वे मुस्करा दिए ,

“ इस विषय पर हमारी प्रायः चर्चा होती है , और मैं तुम्हारी बात से सहमत हूँ, नगर प्रकृति से टूट जाता है , और नागरिकों मेँ धन जोड़ते चले जाने की लालसा जाग उठती है , एक वर्ग अधिक शक्तिशाली हो उठता है , और सारे नियम , कानून , वह अपने लाभ के लिए बनाता चला जाता है , मनुष्य ‘सामान्य ‘और ‘विशेष ‘हो उठते हैं। ”कुछ पल राम अपने चिंतन मेँ लीन प्रतीत हुए , फिर उन्होंने कहा , “ नगर मेँ मनुष्य का सामर्थ्य अर्थव्यवस्था से जुड़ा है , हम ऐसे कानून बना सकते हैं , जिसमें कोई व्यक्ति विशेष अपनी आवश्यकताओं से बहुत अधिक न पाए , और न ही कोई दीनहीन रह जाए। ”

“ परन्तु यदि मनुष्य को अपनी प्रतिभा और परिश्रम का उचित पुरस्कार नहीं मिलेगा , तो वह प्रयत्नशील नहीं रहेगा। ” किसी आचार्य ने कहा।

“ सीता तुम इसका उत्तर देना चाहोगी ?” राम ने सीता को देखते हुए कहा ।

सबकी दृष्टि सीता की ओर मुड़ गई , सीता राम के धनुषबाण को उठाये मंच पर आ गई , उनके तेज और आत्मविश्वास से यह स्पष्ट था कि वह स्वयं भी धनुर्धर हैं।

हाथ जोड़कर प्रणाम करते हुए उन्होंने कहा ,
“ आचार्य , आज्ञा दें। ”

“ अवश्य देवी सीता , अपने दृष्टिकोण से हमें लाभान्वित करें ।”

“ आचार्य , धन की प्रप्ति मात्र परिश्रम से नहीं होती , वह होती है उचित अवसर तथा उचित ज्ञान से , नया ज्ञान पुराने का ऋणी होता है , और यह पुराना ज्ञान समाज के प्रत्येक व्यक्ति की सम्पति होता है , और अनुकूल अवसर भी समाज के सभी भागों के प्रयत्न से धीरे धीरे तैयार होते हैं , इसलिए किसी को भी सीमा से अधिक धन संचय का अधिकार नहीं होना चाहिए। ”

“ उस सीमा का निर्णय कौन करेगा ? “ आचार्य ने पूछा।

“ उसका निर्णय आप विद्व्तजन और प्रजा के योग्य व्यक्ति करेंगे , वास्तव में लक्ष्मण इस चर्चा का भाग बनने के लिए उत्सुक है, नियम कैसे हों , यह समझने के लिए वे कई प्राचीन ग्रंथों का अध्ययन कर रहे हैं ।” जैसे ही राम ने अपनी बात समाप्त की , सबकी दृष्टि एक पल के लिए स्वतः लक्ष्मण की ओर मुड़ गई , और लक्ष्मण ने जहाँ अपना धनुषबाण लिए खड़े थे , वहीं से हाथ जोड़ दिये ।

“ परन्तु राम कानून चाहे कितने भी श्रेष्ठ क्यों न बना दिए जाएँ , उनकी सफलता उनके पालन करने वालों पर निर्भर करेगी , और चरित्र की दृढ़ता का वचन कोई नहीं दे सकता। ” किसी किसान ने खड़े होकर हाथ जोड़ते हुए कहा।

“ इसका उत्तर भी देवी सीता देंगी। ” राम ने हाथ जोड़कर मुस्कराकर कहा , और सीता से धनुषबाण ले लिया।

सीता ने एक बार फिर से सभा को हाथ जोड़कर कहा , “ तो आवश्यकता है हम मनुष्य के आंतरिक निर्माण की प्रक्रिया को समझें , हमारी माताएं कर्मठ और स्नेहशील हों , मातृत्व का सम्मान हो , और मातायें पहले सात वर्ष अपने शिशु का लालन पालन स्वयं करें , हमारे शिशु कुछ वर्ष प्रकृति की गोद में विभिन्न कलाओं में पारंगत हों। समय के साथ अन्य व्यवसाय भी सीखें , इन सब में गुरु शिष्य के प्रति स्नेह बनाए रखें , शिक्षा मनुष्य के निर्माण का साधन है , इसका दान प्रतिदान इसी भाव से हो। मनुष्य का चरित्र स्नेह तथा ज्ञान से बनाया जा सकता है । “

प्रश्न सभी शांत हो गए , तो भोजन पश्चात ये तीनों कुटिया लौट आये , देखा तो भास्कर वहां पहले से ही उपस्थित है।

“ क्षमा चाहता हूँ राम , अभी मेरे प्रश्न समाप्त नहीं हुए। ”

“ हाँ पूछो , “ राम ने उसके लिए आसन बिछाते हुए कहा।

“ राम ,मैं ऋषिपुत्र हूं , वन मेरी माँ भी है और गुरू भी, यहाँ के झरनों ,पशु पक्षियों , बादलों की गड़गड़ाहट में संगीत को सुना है, अपने बच्चे को भोजन कराती मैना में नृत्य देखा है , प्रकृति के स्वयं को बार बार दोहराने में गणित को देखा है, यहाँ की वनस्पति , मिट्टी मेरी नस नस में बसी है , और जब मैं ध्यान में इन सबका चिंतन करता हूँ तो मानो ब्रह्मांड स्वयं अपने भेद खोलने लगता है, यहाँ हम तामसिक पर्वृतियों से दूर , ज्ञान की पिपासा में जीते हुए अपने जीवन का सुख पा जाते हैं , यहाँ कला, ज्ञान, शांति सब हैं , फिर नगर बसाकर जीवन और वातावरण को भ्रष्ट क्यों किया जाय ?”

“ इसका उत्तर तो तुम्हें इतिहास में ढूंढना होगा , मैं तो इतना जानता हूँ , कोई अदृश्य नियम इस प्रकृति को चला रहा है , और मनुष्य पल पल उसके अनुसार ढल रहा है , उसके वश में मात्र इतना है कि वह स्वयं को ब्रह्माण्ड से और समाज से जोड़े रखे , समाज का निर्माण जिन भी कारणों से हुआ हो , अब उसका लौट कर जाना असंभव है , परंतु नगर जनों को सहज होने का प्रयत्न करना चाहिये, इसीलिये सीता ने आरम्भिक शिक्षा वन में करने की बात कही थी ।”

“ जी , मुझे उत्तर मिल गया। ”

भास्कर चला गया , तो लक्ष्मण ने कहा , “ प्रश्नों के साथ जन्में हैं हम , और सुख सुविधाओं का मोह भी है , कभी तो ऐसा समाज बनेगा , जब दोनों में संतुलन होगा। ”

राम मुस्करा दिए , “ हाँ लक्ष्मण हम करेंगे ऐसे समाज का निर्माण। ”

आसमान में बादल घिर रहे थे , वे तीनों अपने विचारों के साथ , शांत बैठे थे।

—-शशि महाजन

106 Views

You may also like these posts

मिलन
मिलन
सोनू हंस
3274.*पूर्णिका*
3274.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
ज्यामिति में बहुत से कोण पढ़ाए गए,
ज्यामिति में बहुत से कोण पढ़ाए गए,
लक्ष्मी वर्मा प्रतीक्षा
#आस
#आस
वेदप्रकाश लाम्बा लाम्बा जी
🌸 आने वाला वक़्त 🌸
🌸 आने वाला वक़्त 🌸
Mahima shukla
डर
डर
अखिलेश 'अखिल'
आधे अधूरा प्रेम
आधे अधूरा प्रेम
Mahender Singh
प्रेम की बात को ।
प्रेम की बात को ।
अनुराग दीक्षित
*गुरु चरणों की धूल*
*गुरु चरणों की धूल*
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
जहां आस्था है वहां प्रेम है भक्ति है,
जहां आस्था है वहां प्रेम है भक्ति है,
Ravikesh Jha
- एक कविता तुम्हारे नाम -
- एक कविता तुम्हारे नाम -
bharat gehlot
#सुप्रभातम-
#सुप्रभातम-
*प्रणय*
बेवजह ख़्वाहिशों की इत्तिला मे गुज़र जाएगी,
बेवजह ख़्वाहिशों की इत्तिला मे गुज़र जाएगी,
शेखर सिंह
तरकीब
तरकीब
Sudhir srivastava
बचपन
बचपन
भवानी सिंह धानका 'भूधर'
जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में
जो भी सोचता हूँ मैं तेरे बारे में
gurudeenverma198
"कलम के लड़ाई"
Dr. Kishan tandon kranti
बसंत पंचमी।
बसंत पंचमी।
Kanchan Alok Malu
चंदा मामा रहे कुंवारे
चंदा मामा रहे कुंवारे
Ram Krishan Rastogi
किताबों से ज्ञान मिलता है
किताबों से ज्ञान मिलता है
Bhupendra Rawat
मुसीबत के वक्त
मुसीबत के वक्त
Surinder blackpen
दिल मेरा एक परिंदा
दिल मेरा एक परिंदा
Sarita Shukla
वर्ण पिरामिड
वर्ण पिरामिड
Rambali Mishra
वो, मैं ही थी
वो, मैं ही थी
शशि कांत श्रीवास्तव
तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
तेरे सांचे में ढलने लगी हूं।
Seema gupta,Alwar
ऐसे लोगो को महान बनने में देरी नही लगती जो किसी के नकारात्मक
ऐसे लोगो को महान बनने में देरी नही लगती जो किसी के नकारात्मक
Rj Anand Prajapati
भारत का परचम
भारत का परचम
सोबन सिंह रावत
गरिबी र अन्याय
गरिबी र अन्याय
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
याचना
याचना
डॉ नवीन जोशी 'नवल'
मुक्तक
मुक्तक
अवध किशोर 'अवधू'
Loading...